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ज्योतिष एवं गणित
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(क) ४ इत्यादि
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है । अनुयोगद्वार सूत्र १४२वें के अनुसार ( क ) २, (कर) ३ करें, (कॅ) 2, वर्गात्मक शक्तियोंका विश्लेषण होता है । इसी प्रकार वर्गमूलात्मक क _१/२, १/४, १/ इत्यादि शक्तियोंका उल्लेख भी जैन गणितमें किया गया है । गणितसार संग्रहमें विचित्र कुट्टीकार, एक गणितका प्रकार आया है, यह सिद्धान्त अंकगणितकी दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके अनुसार बीजगणितके बड़े-बड़े प्रश्न सुलझाये जा सकते हैं । अन्य भारतीय गणितज्ञोंने जिन प्रश्नोंको चक्रवाल और वर्ग प्रकृतिके नियमोंसे निकाला है, वे प्रश्न इस विचित्र कुट्टीकारकी रीतिसे हल किये जा सकते हैं । अंकगणितमें जहाँ कोई भी कायदा काम नहीं करता, वहाँ कुट्टीकारसे काम सरलतापूर्वक निकाला जा सकता है । फुटकर सरलता गणित में त्रिलोकसारान्तर्गत १४ धाराओंका गणित उच्चकोटिका है, इस गणितपरसे अनेक बीजगणित सम्बन्धी सिद्धान्त निकाले जा सकते हैं ' । संक्षेपमें जैन गणितकी विशेषता बीजगणित सम्बन्धी सिद्धान्तोंके सन्निवेशकी है, प्रत्येक परिकर्म सूत्रसे अनेक महत्त्वपूर्ण बीजगणितके सिद्धान्त निकलते हैं ।
जेन रेखागणित - यों तो अंकगणित और रेखागणित आपसमें बहुत कुछ 1 मिले हुए हैं, फिर भी जैन रेखागणितमें कई मौलिक बातें हैं । उपलब्ध जैन रेखागणित के अध्ययन से यहीं मालूम पड़ता है कि जैनाचार्योंने मैन्स्यूरेशनकी ही प्रधानता रखी है, रेखाओंकी नहीं । तत्त्वार्थसूत्रके मूलसूत्रोंमें वलय, वृत्त, विष्कम्भ एवं क्षेत्रफल आदि मैन्स्यूरेशन सम्बन्धी बातोंकी चर्चा सूत्ररूपसे की गयी है । इसके टीका ग्रन्थ भाष्य और राजवार्तिक में ज्या, चाप, बाण, परिधि, विष्कम्भ, विस्तार, बाहु एवं धनुष आदि विभिन्न मैन्स्यूरेशनके अंगोंका सांगोपांग विवेचन किया गया है । भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति एवं त्रैलोक्य प्रज्ञप्ति में त्रिभुज, चतुर्भुज, आयत, वृत्त और परिमण्डल (दीर्घवृत्त) का विवेचन किया गया है । इन क्षेत्रोंके प्रतर और घम, ये दो भेद बताकर अनुयोगद्वारसूत्रमें इनके सम्बन्धमें बड़ी सूक्ष्म चर्चा की गयी है । सूर्यप्रज्ञप्ति समचतुरस्र, विषमचतुरस्र, समचतुष्कोण, विषमचतुष्कोण, समचक्रवाल, विषमचक्रवाल, चक्रार्धचक्रवाल और चक्राकार, इन आठ भेदोंके द्वारा चतुर्भुजके सम्बन्ध में सूक्ष्म विचार किया गया है। इस विवेचनसे पता चलता है कि प्राचीनकालमें भी जैनाचार्योंने रेखागणितके सम्बन्धमें कितना सूक्ष्म विश्लेषण किया है
गणितसार संग्रह में त्रिभुजोंके कई भेद और क्षेत्रफल भी निम्नांकित प्रकारसे निकाले गये हैं
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बतलाये गये हैं तथा उनके भुज, कोटि, कर्ण
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१. देखिये - 'श्री नेमिचन्द्राचार्यका गणित' शीर्षक निबन्ध जैनदर्शन वर्ष ४, अंक १-२ में ।
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