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TE
च छ (खज + चझ)
च इ (इफ + चझ)
परन्तु चछ (छज + चझ )
चइ (इफ + चझ)
२
२
(ज) 2 – (चज)
-
(इफ)
- चत
.. (इफ)
और इफ -
छज + च श
इफ + च फ
बुतक्षेत्र
भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
√ म
-
छज
म (छज
म + न + प + ख
-
चल २
-
प+स
तुलनात्मक कमी
म+न+प + ख
म
म + न + प + ख
म
-
[vi] व्यास = द = |
चक्ष
= पद
[ i ] परिधि = प [ii] क्षेत्रफल = अ = [iii] जीषा = प [iv] वृत्त खण्डका चाप = अ V६ उ +
[ v ] उ = ई (य - V२ – १२)
=
३
६
+ (च)
X म + ब
वृत्तक्षेत्रका गणित तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराज्यातिक, त्रिलोकसार, घवला - टीका, त्रिलोयपणत्ति एवं गणितसार संग्रह में विस्तारपूर्वक आया है । ग्रन्थकारोंने शुद्धतम रूपमें निकालनेका प्रयास किया है। यहां कतिपय सूत्र किया जावेगा ।
पाईका मान जैन देनेका ही प्रयास
(उर +
/ १० स द = व्यास
-
पर - ब
म+न+प + ख
/ ४उ (द - उ ); उ = चाप की ऊंचाई ।
= १० यह मान ग्रीस देशीय मानसे प्रथम दशमलव बिन्दु तक मिलता है ।
√ १० = ३·१६२ } तीन दशमलब बिन्दु तक
T = ३१४२
२०
०२ ३.१४२ ३१४२
परिधिके लिए - / १०८२ = द / १० यह आधुनिक नियम के तुल्य है ।
षट् खण्डागमकी धवला टीकामें
व्या० x १६ + १६ ११३
परिषि हो इसकी प्राचीनता व्यक्त करती है ।
C
- × म + बरे;
= अत्यल्प कमी है ।
+ ३ व्या० यह नियम स्थूल है और इसकी स्थूलता