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________________ ज्योतिष एवं गणित ३६७ (अ) यदि कोई वस्तु विरामावस्थामें है तो वह उसी अवस्थामें रहना चाहती है, जब तक उसपर बाह्य बलका प्रयोग नहीं होता है । (आ) यदि कोई वस्तु समरूपसे सीधी रेखामें गमन करती है, तो वह तब तक इसी अवस्थामें गमन करती रहेगी, जब तक बाहरी बलका प्रयोग नहीं होता। __संसारी जीवको गति कर्मसंस्कारवश होती है, पर जब संकार नष्ट हो जाता है और बाह्य बल धर्म-अधर्म द्रव्यका अभाव रहता है, तो गति रुक जाती है। जीव और पुङ्गलोंकी गति लोकके मध्यसे लेकर ऊपर, नीचे और तिर्मक क्रमसे स्थित आकाश प्रदेशोंकी पंक्तिके अनुसार होती है। गति नियमका स्पष्टीकरण करनेके हेतु वस्तुकी जड़ताको स्थितिका परिज्ञान आवश्यक है । जड़ताके नियमके अनुसार कोई भी वस्तु अपनी पूर्व अवस्थाको स्थिर रखनेका प्रयत्न करती है, चाहे वह विरामात्मक अवस्था हो अथवा सीधी रेखामें समरूप गतिको अवस्था हो । प्रथम प्रयत्नको विरामात्मक जड़ता (Inertia of rest) और दूसरेको गत्यात्मक जड़ता (Inertia of motion) कहते हैं । उदाहरणार्थ यों कहा जा सकता है कि यदि किसी टेबुलके एक किनारेपर कोई पुस्तक रखी हो तो वह टेबुलके दूसरे किनारेपर स्वयं नहीं जा पाती, वह अपनी विरामावस्थाको बनाये रखती है। यदि वह टेबुलके दूसरे किनारेपर चली जाती है, तो उसके वहाँ पहुँचने के कारणोंका पता लगानेपर ज्ञात होता है कि पुस्तकको किसीने अपने हाथसे हटाया है, या वह वायुके झोंकेसे वहाँ पहुँच गई है। इससे स्पष्ट है कि पुस्तक अपनी विरामावस्थामें स्वयं नहीं बदलती किन्तु किसी बाह्य कारणके द्वारा उसमें परिवर्तन सम्भव होता है । यह नियम समस्त निर्जीव वस्तुमें प्रवृत्त है, बाह्यकरणके अभावमें वस्तुमें गति नहीं होती है । बाह्यकरणका दूसरा नाम बाहरी बल है, यही वस्तुको गतिशील होनेके लिए प्रेरित करता है । उमास्वामी, पूज्यपाद और अकलंकदेवके अनुसार वस्तुकी गति उसकी वह राशि है, जो वस्तु की मात्रा और उसके नेग दोनोंसे उत्पन्न होती है। इसका मान उस वस्तुकी मात्रा और वेगके गुणनफल तुल्य होता है । बल = मात्रा x त्वरण = आवेगके परिवर्तन की दर । आवेग = मात्रा x वेग त्वरण-एक समयमें वस्तुके वेगमें जो परिवर्तन होता है, उसे वस्तुका त्वरण कहते हैं। आवेगके परिवर्तनको दर लगाये गये बलका समानुपाती होती है और यह उसी दिशामें कार्य करती है, जिसमें बल कार्य करता है । मान लिया कि किसी वस्तुकी मात्रा = म वस्तुका प्रारम्भिक वेग वस्तुका अन्तिम वेग मक→मके
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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