________________
ज्योतिष एवं गणित सीधा वर्गान्तर ही बतलाया है। अत एव जिसमें थोड़ी क्रिया हो वह लाघव और जिसमें ज्यादा हो वह गौरव कहा जाता है। इससे आचर्य की कितनी गणितज्ञता प्रकट होती है इस बातको गणितशास्त्रके जानकार हो समझ सकते हैं। आचार्य कृत सूत्र की वासना निम्न प्रकारसे सिद्ध होती है।
यहाँ पर ज्या शब्दसे पूर्ण ज्या ही जानना चाहिये । कल्पना की कि अ क ज्याके वृत्तकेन्द्र । ग प=श रश, ग-ध वृत्तव्यास व्या० ।
- अ अब क्षेत्रमितिके नियमसे
के अके२ - अय-(अके + अप) (अके - अप) इसको ४ से गुणा किया और ४ से ही भाग दिया तब =४x (अके + अप) (अके - अप) .
।
वा
(२ अके x २ अप) (२ अके - २ अप) (व्या + ज्या) (व्या - ज्या) व्या - ज्या' = क्योंकि
४
योगान्तर घात वर्गान्तर-तुल्य होता है । इसका वर्गमूल लिया तो के प-म . गप-केग - केप-३व्या = - व्या-भू = श इस प्रकारसे आचार्यका सूत्र निष्पन्न हो गया।
जीवा-चापका गणित भी आचार्यका महत्त्वपूर्ण है भास्कराचार्य जो कि गणित-शास्त्रके अद्वितीय ज्ञाता माने जाते हैं उन्होंने भी स्थूल जीवाको ही निकाला है। जैसे-लीलावतीमें लिखा है कि "स्थूलजीवाज्ञानार्थमाह"-'चापोननिघ्नपरिधिः प्रथमाह्वयस्यादित्यादि'। किन्तु आचार्यने सूक्ष्मता बतलानेके लिये करणी-द्वारा जीवा तथा चापको निकालनेके लिये करणसूत्र बतलाये हैं । जो गणित करणीसे निकाला जाता है वह बहुत ही सूक्ष्म आता है । आचार्यकृत करण सूत्रों की सूक्ष्मताको पुष्ट करनेके लिये केवल वासना हो प्रमाणरूप है, जो कि सर्वथा गणितशास्त्रके मान्य है। ब्रह्म-सिद्धान्त जो कि गणित-ज्योतिष में बहुत प्राचीन माना जाता है, उसकी जीवानयन-क्रिया भास्कराचार्यसे भी स्थूल है; क्योंकि उसकी वासना स्वल्पान्तरसे ही सिद्ध होती है तथा भास्कर-वापनामें भी स्वल्पान्तरकी आश्यकता पड़ती है । परन्तु आचार्यकृत करण-सूत्रकी वासनामें स्वल्पान्तरको आवश्यकता नहीं पड़ती है । अत एव आचार्यकृत ज्या-चापका गणित सर्वश्रेष्ठ है । इस गणितकी ज्योतिषशास्त्रमें बहुत ही आवश्यकता पड़ती है । अजैन ज्योतिषमें ग्रहोंकी कक्षा दीर्घवृत्ताकार है, और चलनेका मार्ग भी वृत्ताकार है; इसलिये मध्य ग्रहको मन्दस्फुट अथवा स्फुट बनानेमें जीवा-तुल्य संस्कार करना पड़ता है, इसलिये ग्रहण आदिको सिद्ध करने के लिये जीवाचापके गणितकी नितान्त आवश्यकता होती है । जैन ज्योतिष में भी जीवा-चापके गणितकी अत्यावश्यकता है, क्योंकि प्रत्येक वीपीके विना जीवा-चापका ज्ञान किये ग्रहोंकी गतिका ज्ञान नहीं हो सकता है। अत एव जीवा-चापका गणित ज्योतिषशास्त्रसे सम्बन्ध रखता है । इस प्रकारसे आचार्यने ज्योतिष शास्त्र पर प्रकाश डाला