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१२८ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मय का अवदान
२-धनेशको दशामें धनलाभ, पर शारीरिक कष्ट होता है। यदि धनेश पापग्रहसे युक्त हो तो इस दशामें मृत्यु भी होती है।
३-तृतीयेशकी दशा कष्टकारक, चिन्ताजनक और साधारण आमदनी कराने वाली होती है ।
___४-चतुर्थेशकी दशामें घर, वाहन, भूमि आदिके लाभके साथ माता, मित्रादि और स्वयं अपनेको शारीरिक सुख होता है। चतुर्थेश बलवान, शुभ ग्रहोंसे दृष्ट हो तो इसकी दशामें नया भवन बनता है। लाभेश और चतुर्थेश दोनों दशम या चतुर्थ में हों तो इस ग्रहकी दशामें मिल या बड़ा कारोबार जातक करता है लेकिन इस दशाकालमें पिताको कष्ट रहता है। विद्यालाभ, विश्वविद्यालयोंकी बड़ी उपाधियाँ इस दशामें प्राप्त होती है। यदि जातकको यह दशा अपने विद्यार्थीकालमें नहीं मिले तो अन्य समयमें इस दशाके कालमें उन्नति तथा विद्या द्वारा यशकी प्राप्ति होती है ।
५-पंचमेशकी दशामें विणाप्राप्ति, धनलाभ, सम्मानवृद्धि, सुबुद्धि, माताकी मृत्यु या माताके पीड़ा होती है । यदि पंचमेश पुरुष ग्रह हो तो पुत्र और स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तानकी प्राप्तिका योग रहता है । सन्तान योगका विचार करने पर ही इस योग का फल जाना जा सकता है।
६-लग्नेश अष्टममें, अष्टमेश लग्न में हों, छठे स्थानमें शनि, सूर्य और चन्द्रमा एकत्र हों तथा पाप ग्रहोंसे इष्ट चन्द्रमा ६।८।१२ वें भावमें हो, लग्नेश अष्टममें पाप ग्रहोंसे इष्ट या युत हो तो १८-२० वर्ष तक आयु होती है ।
७-लग्नमें वृश्चिक राशि हो और उसमें सूर्य, गुरु स्थित हों तथा अष्टमेश केन्द्रमें हो, चन्द्रमा और राहु सप्तम, अष्टम भावमें हों, पाप ग्रहके साथ गुरु लग्नमें हो, अष्टम स्थानमें कोई ग्रह नहीं हो, अष्टमेश द्वितीयेश और नवमेश एक साथ हों तथा लग्नेश अष्टममें हो तो जातकको २२-२४ वर्षकी आयु होती है ।
८-शनि द्विस्वभाव राशिगत हो कर लग्नमें हो और द्वादशेश तथा अष्टमेश निर्बल हों तो २५-३० वर्षकी आयु होती है । यह फल द्वितीयेश, तृतीयेश या सप्तमेशकी दशामें घटित होता है।
९-लग्नेश निर्बल, अष्टमेश द्वितीय या तृतीयमें हो, लग्नेश, अष्टमेश केन्द्रवती हों तथा केन्द्रमें अन्य कोई शुभ ग्रह नहीं हो तो अल्पायु होती है, अष्टमेशकी दशामें मृत्युभय, स्त्री मृत्यु एवं नाना प्रकारको व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं ।
१०-नवमेशकी दशामें तीर्थयात्रा, भाग्योदय, दान, पुण्य, विद्या द्वारा उन्नति, भाग्यवृद्धि, सम्मान, राज्यसे सहयोग एवं किसी बड़े कार्यको सफलता प्राप्त होती है । दशमेश को दशामें राजाश्रयकी प्राप्ति, धनलाभ, सम्मानवृद्धि और सुखोदय होता है ।
११-एकादशेशको दशामें धनलाभ, ख्याति, व्यापारसे प्रचुर लाभ एवं पिताकी मृत्यु होती है । यह दशा साधारणतः शुभ-फलदायक होती है । यदि एकादशेश पर क्रूर ग्रहकी दृष्टि हो तो यह दशा रोगोत्पादक होती है ।