________________
११२ भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान द्वारा प्रत्येक जगत्को प्रभावित करता है। बतएव कर्म संस्कारों के कारण पटित होनेवाली घटनाबों एवं अन्य सम्भावनाओंका अध्ययन करनेके लिए जातक शास्त्र में व्यक्तिके व्यक्तित्वको बाह और आन्तरिक दो भागोंमें विभक्त किया है । बाह्य व्यक्तित्व के अन्तर्गत शरीर, शारीरिक रोग, शरीरजन्य प्रभाव आदि परिगणित है। यह व्यक्तित्व भौतिकताके साथ सम्बड होनेपर भी आत्मा की चैतन्य क्रिया के साथ इस प्रकार सम्बद है जिससे पूर्व जन्ममें किये गये संस्कारोंके फलस्वरूप विचार भाव और क्रियाओंकी अभिव्यक्ति होती है तथा वर्तमान जीवनके अनुभवों और क्रिया-प्रतिक्रियाओं द्वारा घटित होनेवाले संयोग और घटनाओंकी सूचना प्राप्त होती है। शनैः शनैः यह व्यक्तित्व विकसित होकर आन्तरिक व्यक्तित्वमें मिलनेका प्रयास करता है । आन्तरिक व्यक्तित्वमें अनेक बाह्य व्यक्तिस्वोंकी स्मृतियों, अनुभवों
और प्रवृत्तियोंका संश्लेषण रहता है, जिससे विभिन्न प्रकारके संयोग, घटनाएं एवं फलोपभोग प्राप्त होते है। व्यक्तित्व के प्रतीक ग्रह
मनुष्यका अन्तःकरण इन दोनों व्यक्तियोंके मिलानेका कार्य करता है । जातक में बाह्य व्यक्तित्वके तीन भेद माने गये है-विचार, भाव और किया। इसी प्रकार आन्तरिक व्यक्तिस्वके भी ये तीन भेद स्वीकार किये गये है। बाह्य व्यक्तित्वके उक्त तीन भेद ओर आन्तरिक व्यक्तित्वके उक्त तीनों भेदोंको सन्तुलित रूप देनेका कार्य अन्तःकरणके द्वारा होता है । दूसरे शब्दोंमें यों कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्तित्वके तीनों रूप एक मौलिक अवस्थामें आकर्षण और विकर्षणकी प्रवृत्ति द्वारा अन्तःकरणकी सहायतासे सन्तुलित रूपको प्राप्त होते हैं। मनुष्यको उन्नति और अवनति इस सन्तुलनके आधारपर ही निर्णीत की जाती है। जातकशास्त्र अनुसार मानव जीवनके बाह्य व्यक्तित्वके तीन रूप और आन्तरिक व्यक्तित्वके तीन रूप और एक अन्तःकरण इन सातके प्रतीक निम्नलिखित सात ग्रह है
१-बृहस्पति २-मंगल ३-चन्द्रमा
७-शनि ४-शुक्र
उक्त ग्रहोंके अनुसार मनुष्योंके भावी फल भिन्न-भिन्न रूपमें अभिव्यक्त होते हैं । अतः प्रत्येक प्राणीके जन्म-जन्मान्तरोंके संचित प्रारब्ध और क्रियमाण कर्म विभिन्न प्रकार के है । अतः प्रतीक रूप ग्रह अपने-अपने प्रतिरूप्यके सम्बन्धमें विभिन्न प्रकारके तथ्य प्रकट करते है। प्रतिरूप्योंकी सच्ची अवस्था बीजगणितकी अव्यक्त मान कल्पना द्वारा निष्पन्न अंकोंके समान प्रकट हो जाती है।
बाए व्यक्तित्वके प्रथम रूप विचारका प्रतीक बृहस्पति है । यह प्राणीमात्रके शरीरका प्रतिनिधित्व करता है और शरीर संचालनके लिए रक्त प्रदान करता है । जीवित प्राणीके रक्त में रहनेवाले कीटाणुओंकी चेतनासे इसका सम्बन्ध है। गुरु द्वारा मनुष्यकी आत्मिक, मनास्मिक और शारीरिक कार्य गतियोंका विश्लेषण किया जाता है, क्योंकि मनुष्यके व्यक्तित्वके किसी भी रूपका प्रभाव शरीर, आत्मा और बाह्य जड़ चेतन पदार्थ, जो शरीरसे भिन्न है, पर पड़ता है, उदाहरणार्थ बाह्य व्यक्तित्वके प्रथम रूप विचारको लिया जा सकता है।