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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
पहले किसी भी देशकी पलभाका ज्ञान करके उसको तीन स्थानमें रखकर पहले स्थानमें १० से, दूसरेमें ८ से और तीसरेमें १० से गुणा करना चाहिये। तीसरे स्थानके गुणनफलमें तीनसे भाग देना चाहिये । इस प्रकार पूर्वोक्त तीन चर खण्ड आयेंगे।
पुनः सायन सूर्यका भुज बना कर उसमें राशि संख्या तुल्य चर खण्डका योग करके उसमें अंशादिसे गुणे हुए भोग खण्डका ३०वा भाग जोड़नेसे घर होता है। वह तुलादि ६ राशिमें सूर्य हो तो धन तथा मेषादि ६ राशिमें सूर्य हो तो ऋण होता है । इस चर का मध्यम रविको विकलामें संस्कार करनेसे रवि स्पष्ट होता है और चरको २ से गुणा कर ९ का भाग देनेसे जो लन्ध आवे, उसका देशान्तर संस्कृतमध्यम चन्द्रमाको विकलामें संस्कार करनेसे चन्द्रमा स्पष्ट होता है । चन्द्रमाके फलमें देशान्तर, भुजान्तर, चरान्तर ये तीन संस्कार किये जाते हैं तब चन्द्रमा स्पष्ट होता है। इसी मान्यताके अनुसार अन्य बुधादिक ग्रहोंका भी साधन किया जाता है। इस प्रकारसे संक्षेपमें पञ्चाङ्ग प्रणालीपर प्रकाश डाला गया है । कभी अवकाश मिलनेपर ग्रह और नक्षत्रोंके स्पष्टीकरणको प्रक्रियाको भी पाठकोंके सामने रक्तूंगा।