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ज्योतिष एवं गणित
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जो रेखा करतल मूलके मध्य स्थानसे निकलकर साधारणतः मातृ रेखाके ऊर्ध्व देशका स्पर्श करती है अथवा उसके निकट पहुँचती है उसकी संज्ञा पितृ रेखा है । कुछ विचारक इसे आयु रेखा भी कहते हैं । यह रेखा चौड़ी और विवर्ण हो तो मनुष्य रुग्ण, नीच स्वभाव, दुर्बल और ईर्ष्यालु होता है । दोनों हाथोंमें पितृ रेखाके छोटी होनेसे अल्पायु सूचित होती है। पितृ रेखाके श्रृंखलाकृति होनेसे व्यक्ति रुग्ण, दुर्बल और मध्यमायु होता है । दो पितृ रेखा होनेसे व्यक्ति दीर्घायु, विलासी, सुखी और किसीके धनका उत्तराधिकारी बनता है । पितृ रेखामें शाखाओंके निकलनेसे नस जाल कमजोर रहता है । चन्द्र स्थान तक जानेवाली पितृरेखा संघर्ष, कष्ट और उत्तर जीवनमें विपत्तिकी सूचना देती है । पितृ रेखाकी कोई शाखा बुध क्षेत्रमें प्रविष्ट हो तो व्यवसायमें उन्नति, शास्त्र चिन्तन, ख्याति, लाभ एवं ऐश्वर्य प्राप्ति होती है । पितृ रेखासे दो रेखाएँ निकलकर एक चन्द्र और दूसरी शुक्र स्थानमें जाए तो मनुष्य विदेशमें प्रगति करता है। चन्द्रस्थानमें कोई रेखा आकर पितृ रेखा को काटे तो ३५ वर्ष की अवस्थामें पक्षाघातकी सूचना प्राप्त होती है। जब मातृ, पितृ आयु ये तीनों रेखाएँ एक स्थान पर मिलती हैं तो दुर्घटना द्वारा मृत्युकी सूचक होती है। पितृ रेखामें छोटी छोटी रेखाएँ आकर चतुष्कोण उत्पन्न करें तो स्वजनोंसे विरोध उत्पन्न होता है। और जीवन में अनेक स्थानों पर असफलताएँ प्राप्त होती हैं ।
__ जो सीधी रेखा पितृ रेखाके मूलके समीप आरम्भ होकर मध्यमा अगुलिकी ओर गमन करती है उसे ऊर्ध्व रेखा कहते हैं। जिसकी ऊर्ध्व रेखा पितृ रेखासे निकलती है वह अपनी चेष्टासे सुख और सौभाग्य लाभ करता है। ऊर्ध्व रेखा हस्ततलके बीचसे निकलकर बुध स्थान तक जाए तो वाणिज्य व्यवसायमें अथवा वक्रता और विज्ञान में उन्नति होती है । रवि स्थान तक जानेवाली ऊर्ध्व रेखा साहित्य और शिल्पमें उन्नतिकी सूचना देती है। यह रेखा मध्यमा अंगुलिसे जितनी ऊपर उठेगी उतना ही शुभ फल प्राप्त होगा। ऊर्ध्व रेखासे उन्नति, अवनति, भाग्योदय, अवस्था विशेष में कष्ट, सुख, दुर्घटनाएँ, अकस्मात्, वस्तुलाभ आदि बातों की सूचना प्राप्त होती है। जिसके हाथमें ऊर्ध्व रेखा नहीं रहती है, वह व्यक्ति शिथिलाचारी उद्यमहीन एवं कठिनाईसे सफलता प्राप्त करनेवाला होता है। तर्जनीसे लेकर मूल तक ऊर्ध्व रेखाके स्पष्ट होनेसे व्यक्ति राजदूत होता है । मध्यमा अंगुलिके मूल तक जिसकी ऊर्ध्व रेखा दिखलाई पड़े वह सुखी, वैभवशाली और पुत्र पौत्रादि समन्वित होता है।
जिस व्यक्तिके मणिबन्धमें तीन सुस्पष्ट सरल रेखाएँ हों, वह दीर्घजीवी, स्वस्थ शरीर और सौभाग्यशाली होता है। मणिबन्ध रेखाएँ कलाई पर होती हैं, और इनका फलाफल ग्रहोंके स्थानोंके अनुसार निश्चित किया जाता है । मणिबन्ध रेखाओंका विस्तारपूर्वक विवेचन अंग विद्याके ग्रन्थोंमें मिलता है। तर्जनी और मध्यमा अंगुलीके बीचसे निकलकर अनामिका और कनिष्ठाके मध्य स्थल तक जानेवाली रेखा शुक्र निबन्धिनी कहलाती है । इस रेखाके भग्न या बाहु शाखा विशिष्ट होनेपर हृदय रोगोंका अध्ययन किया जाता है। बृहस्पति स्थानसे अर्ध चन्द्राकार रेखा बुध स्थान तक जाती है तो व्यक्ति एम० पी० या एम० एल० ए० होता है।
___ उक्त प्रमुख रेखाओंके वर्णनके साथ सूर्य रेखा, मस्तक रेखा, हृदय रेखा, ज्ञान रेखा, शिल्प रेखा जैसी अनेक छोटी छोटी रेखाओंका भी विवेचन आया है । इन छोटी रेखाओंकी संख्या कुल मिलाकर १०८ है ।