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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
प्रतिपादन करना अवयवाकृति है। नासिका, नेत्र, दन्त, ललाट मस्तक और वक्षस्थल इन छ: अवयवोंके उन्नत होनेसे मनुष्य सुलक्षणयुक्त होता है । करतल, पदतल, नयनप्रान्त, नख, तालु, अधर और जिह्वा इन सात अंगोंके रक्त होनेसे जीवन में उन्नति होती है। जिसकी कमर विशाल हो, वह बहुपुत्रवान् होता है । भुजाएं लम्बी होनेसे श्रेष्ठ व्यक्तित्वके साथ पराक्रमकी प्राप्ति होती है । जिसका वक्षस्थल विस्तीर्ण है वह धन-धान्यशाली और जिसका मस्तक विशाल है वह पूजनीय होता है । जिस व्यक्तिका नयन प्रान्त लाल है वह कभी निर्धन नहीं होता है। तप्त कांचनके समान दोप्त वर्णवाला व्यक्ति ऐश्वर्यशाली, प्रतापी और मान्य होता है। जिसका शरीर धूमिल वर्णका है वह निर्धन होता है तथा अधिक रोमवाला व्यक्ति सुखी नहीं होता । जिसकी हथेली चिकनी और मृदुल हो, वह ऐश्वर्य भोग करता है । जिसके पैरका तलवा लाल होता है, वह सवारीका उपभोग सदा करता है। पैरके तलवोंका चिकना और अरुण वर्णका होना शुभ माना गया है। जिस व्यक्तिके केश ताम्रवर्ण और लम्बे तथा घने हों वह पच्चीस वर्षकी अवस्थामें पागल या उन्मत्त हो जाता है। इस प्रकारके व्यक्तिको ४० वर्षको अवस्था तक अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं । जिस व्यक्तिकी जिह्वा इतनी लम्बी हो जो नाकका अग्र भाग स्पर्श कर सके, तो वह योगी या मुमुक्षु होता है । जिसकी बाहु घुटनोंका स्पर्श करती हों या उससे भी कुछ लम्बी हों, वह अत्यन्त प्रभावशाली, शासक, मुमुक्षु या योगी होता है। घुटनोंसे छोटी बाहों वाला व्यक्ति धूर्त, कपटी, कुचाल और प्रभावहीन होता है । स्थूल भुजाओं वाला धनिक और पराक्रमशाली होता है। जिसकी भुजाएं कृश, लघु और असन्तुलित होती हैं, वह धूर्त, चोर, डाकू या धोखेबाज होता है। इसी प्रकार जिस व्यक्तिके दाँत विरल–अलग-अलग हों और हँसनेपर तालुभाग दिखलाई दे, उस व्यक्तिको अन्य किसीका धन प्राप्त होता है और ऐसा व्यक्ति दुराचारी होता है । अवयवाकृतिके अन्तर्गत हस्ताकृति और ललाटाकृति भी सम्मिलित है । हस्ताकृतिमें सात प्रकारके हाथोंका वर्णन आया है१. समकोण
५. निकृष्ट १. चमषाकार
६. विषय ३. दार्शनिक
७. मिश्रित ४. शिल्पी हस्तकारोंका निरूपण
समकोण हाथ सबसे श्रेष्ठ है। इसका दूसरा नाम चतुष्कोण भी है। इसमें कलाई और अंगुलियोंके बीचमें हथेली और अंगुलियां अलग-अलग नापमें समकोणाकार होती हैं। इस हाथके नाखून चतुष्कोण या चौकोन होते हैं। मध्यमा अंगुलीकी बीचको गाँठ आकारमें कुछ बड़ी होती है। इस प्रकारके हाथ वाला व्यक्ति अध्यवसायी, सूक्ष्मबुद्धिवाला, राजनीतिक, कर्तव्यपरायण, गम्भीर, कल्पना-प्रवीण, नियमित कार्य करने वाला, विद्या व्यसनी, सदाचारी, शिष्ट और क्रियानिष्ठ होता है। इस प्रकारके हाथवाले व्यक्ति शिक्षक, वकील, व्यवसायी, प्रन्थकार, मसिजीवी, न्यायाधीश आदि होता है ।
चमषाकार हाथकी अंगुलियाँ मुड़ी हुई, टेढ़ी सीधी होती हैं । हथेली कलाईके पास अधिक और अंगुलियोंके पास कम चौड़ी होती है। किसी-किसी हायमें अंगुलियोंके पास अधिक