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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
पंचम भाग-६ भाग अवशेष दिन समझना चाहिये । इसी प्रकार दोपहरके बादकी छायामें विपरीत दिनमान जानना चाहिये । इस ग्रन्थमें गोल, त्रिकोण, लम्बी, चौकोर वस्तुओंकी छाया परसे दिनमानका ज्ञान किया गया है ।
चन्द्रप्रज्ञप्तिमें चन्द्रमाके साथ तीन मुहूर्त तक योग करने वाले श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृत्तिका, मृगसिर, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढ़ा ये पन्द्रह नक्षत्र, ४५ मुहर्त तक चन्द्रमाके साथ योग करने वाले पूर्वा भाद्रपद, रोहिणी, पुनर्वसु उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढ़ा ये छ: नक्षत्र है एवं पन्द्रह मुहूर्त तक चन्द्रमाके साथ योग करने वाले शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा ये छः नक्षत्र बताये गये हैं ।
___ज्योतिष करण्डकमें यों तो अनेक विशेषताएं हैं पर नक्षत्र लग्ग सम्बन्धी विशेषता विशेष उल्लेखयोग्य है । इस ग्रंथमें लग्न निरूपणकी यह प्रणाली सर्वथा नवीन और मौलिक है:
लग्गं च दक्खिणायविसुवे सुवि अस्स उत्तरं अयणे ।
लग्ग साई विसुयेसु पंचसु वि दक्खिणे अयणे ।। अर्थात् अस्सा यानी अश्विनी और साई-श्वाति ये नक्षत्र विषुवके लग्न बताये गये हैं। यहाँ विशिष्ट अवस्थाकी राशिके समान विशिष्ट अवस्थाके नक्षत्रोंको लग्न माना है। तुलना
ग्रीक ज्योतिष और चन्द्रप्रज्ञप्ति तथा ज्योतिषकरण्डकके सिद्धान्तोंकी तुलना करनेसे निम्न निष्कर्ष निकालती हैं ।
(१) ज्योतिषकरण्डककी लग्न प्रणाली जिसका आधार नक्षत्र मान है ग्रीक प्रणालीसे बिलकुल भिन्न है । ग्रीक ज्योतिष में लग्नका मान राश्य अंश कलात्मक रूपसे माना गया है। यदि गहराईसे ज्योतिष करण्डकका अवगाहन किया जाय तो नक्षत्रोंकी आकृतियाँ उनकी ताराओंकी संख्या ग्रीक ज्योतिष की अपेक्षा सर्वथा भिन्न है।
(२) चन्द्रप्रज्ञप्तिमें प्रतिपादित छायापरसे दिनमान साधनकी प्रक्रिया ग्रीक ज्योतिषसे तो भिन्न है ही पर यह समय भारतीय ज्योतिष में प्राचीनताकी दृष्टिसे एक मौलिक प्रणाली है। इस प्रणालीका विस्तृत विकसित रूप ही युज्या, त्रिज्या, कुज्याके रूपमें सिद्धान्त ज्योतिषमें आया है । ग्रह-गणितके जिन बीज सूत्रोंका उल्लेख इस ग्रन्थमें किया गया है उनका निरूपण पोक ज्योतिष में कमसे कम २०० वर्ष बाद हुआ है । नक्षत्रांत पूर्णिमाका निरूपण ग्रीक ज्योतिष में ई० स०की पहली दूसरी शताब्दीमें हुआ है । आज कल भी ग्रीक पंचांग सूर्य नक्षत्रके आधार पर ही पूर्णिमा तथा अमावस्याका प्रतिपादन करते हैं पर चन्द्रप्रज्ञप्तिमें चान्द्र नक्षत्रोंके उपभोग और मुहूर्तोंके प्रमाणानुसार ही पूर्णिमा और अमावस्याकी सिद्धिकी गयी है । पंचवर्षात्मक युग परसे समय शुद्धिके निमित्त पंचांग तैयार करना और उनके स्थूल मानों द्वारा समय शुद्धिका कथन करना चन्द्रप्रज्ञप्ति और ज्योतिषकरण्डकका प्रधान वर्ण्य विषय है । अतः प्रत्येक गणितमें