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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान राज्यसम्मान और पदोन्नतिका विवेचन किया गया है । यह ग्रन्थ सामुद्रिक शास्त्रको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण और पठनीय है।
उभयकुशल-का समय १८वीं शतीका पूर्वार्द्ध है। ये फलित ज्योतिषके अच्छे ज्ञाता है । इन्होंने विवाहपटल और चमत्कार चिंतामणि टबा नामक दो ग्रंथोंकी रचना की है । ये मुहूर्त और जातक, दोनों ही विषयोंके पूर्ण पंडित थे । चिंतामणि टबामें द्वादश भावोंके अनुसार ग्रहोंके फलादेशका प्रतिपादन किया गया है । विवाहपटलमें विवाहके मुहूर्त और कुण्डली मिलानका सांगोपांग वर्णन किया गया है।
लब्धचन्द्रगणि-ये खरतरगच्छीय कल्याणनिधानके शिष्य थे। इन्होंने वि० सं० १७५१ में कात्तिक मासमें जन्मपत्री पद्धति नामक एक व्यवहारोपयोगी ज्योतिषका ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थमें इष्टकाल, भयात, भभोग, लगन, नवग्रहोंका स्पष्टीकरण, द्वादशभाव, तात्कालिक चक्र, दशबल, विंशोत्तरी दशा साधन आदिका विवेचन किया गया है ।
बापती मुनि-ये पार्श्वचन्द्रगच्छीय शाखाके मुनि थे । इनका समय वि० सं० १७९३ माना जाता है । इन्होंने तिथि सारणी नामक ज्योतिषका महत्त्वपूर्ण अन्य लिखा है । इसके अतिरिक्त इनके दो तीन फलित-ज्योतिषके भी मुहूर्त सम्बन्धी उपलब्ध ग्रन्थ हैं । इनका साखी ग्रन्थ, मकरन्द साखीके समान उपयोगी है।
यशस्वतसागर-इनका दूसरा नाम जसवंत सागर भी बताया जाता है । ये ज्योतिष, न्याय, व्याकरण और दर्शन शास्त्रके धुरन्धर विद्वान् थे। इन्होंने ग्रहलाघवके ऊपर वात्तिक नामकी टीका लिखी है । वि० सं० १७६२ में जन्मकुण्डली विषयको लेकर 'यशोराज-पद्धति' नामक एक व्यवहारोपयोगी ग्रन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ जन्मकुण्डलीकी रचनाके नियमोंके सम्बन्धमें विशेष प्रकाश डालता है। उत्तराद्ध में जातक पद्धतिके अनुसार संक्षिप्त फल बतलाया है।
इनके अतिरिक्त विनयकुशल, हरिकुशल, मेघराज, जिनपाल, जयरत्न, सूरचन्द्र आदि कई ज्योतिषियोंकी ज्योतिष सम्बन्धी रचनाएं उपलब्ध हैं। जैन ज्योतिष साहित्यका विकास आज भी शोष टीकाओंका निर्माण एवं संग्रह ग्रन्थोंके रूपमें हो रहा है ।' संक्षेपमें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति गणित, प्रतिभागणित, पञ्चांग निर्माण गणित, जन्मपत्रनिर्माण गणित आदि गणित ज्योतिषके अंगोंके साथ होराशास्त्र, संहिता, मुहूर्त, सामुद्रिक शास्त्र, प्रश्नशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, निमित्तशास्त्र, रमलशास्त्र, पासकेवली प्रभृति फलित अंगोंका विवेचन जैन ज्योतिषमें किया गया है । जैन ज्योतिष साहित्यके अब तक पांच सौ ग्रन्थोंका पता लग चुका है।
१. भाद्रबाहु संहिताका प्रस्तावना अंश । २. महावीर स्मृतिग्रन्थके अन्तर्गत 'जैनज्योतिषकी व्यावहारिकता' शीर्षक निबन्ध, - पृ० १९६-१९७ । ३. वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थके अन्तर्गत 'भारतीय ज्योतिषका पोषक जैन ज्योतिष',
पृ० ४७८-४८४ ।