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ज्योतिष एवं गणित
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रहने वाले थे। इनका समय ई० सन् १०४३ माना गया है। इनका आयसद्भाव नामक ज्योतिष ग्रन्थ उपलब्ध है । आरम्भमें ही कहा गया है ।
सग्रीवादिमुनीन्द्रः रचितं शास्त्रं यदायसद्भावम् । तत्सम्प्रत्यार्थाभिर्विरच्यते मल्लिषेणेन ॥ ध्वजधूमसिंहमण्डल वृषश्वरगजवायसा भवन्तयायाः ।
ज्ञायन्ते ते विद्वद्भिरिहैकोत्तरगणनया चाष्टौ । इन उद्धरणोंसे स्पष्ट है कि इनके पूर्व भी सुग्रीव आदि जैन मुनियोंके द्वारा इस विषय की और रचनाएं भी हुई थीं, उन्हींके सारांशको लेकर आयसद्भावकी रचना की गई है । इस कृतिमें १९५ आर्याएँ और अन्तमें एक गाथा, इस तरह कुल १९६ पद्य हैं। इसमें ध्वज, धूम, सिंह मण्डल, वृष, खर, गज और वायस इन आठों आर्योंके स्वरूप और फलादेश बणित है।
भट्टवोसरि-आयज्ञानतिलक नामक ग्रन्थके रचयिता दिगम्बराचार्य दामनन्दीके शिष्य भट्टवोसरि है । यह प्रश्न-शास्त्रका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें २५ प्रकरण और ४१५ गाथाएं हैं । ग्रन्थकर्ताको स्वोपज्ञ वृत्ति भी है। दामनन्दीका उल्लेख श्रवणवेल्गोलके शिलालेख नं० ५५ में पाया जाता है । ये प्रभाचन्द्राचार्यके सधर्मा या गुरु भाई थे। अतः इनका समय विक्रम संवत्की ११ वीं शती है और भट्टवोसरिका भी इन्हींके आस-पासका समय है ।
इस प्रन्यमें ध्वज, धूम, सिंह, गज, खर, श्वान, वृष, ध्वांस इन आठों आर्यों द्वारा प्रश्नोंके फलादेशका विस्तृत विवेचन किया है। इसमें कार्य-अकार्य, हानि-लाभ, जय-पराजय, सिद्धि-असिद्धि आदिका विचार विस्तारपूर्वक किया गया है। प्रश्न शास्त्रकी दृष्टिसे यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
उदयप्रभदेव-इनके गुरुका नाम विजयसेन सूरि था। इनका समय ई० सन् १२२० बताया जाता है। इन्होंने ज्योतिष विषयक आरम्भ सिद्धि अपरनाम व्यवहार चर्या ग्रन्थकी रचना की है। इस ग्रन्थपर वि० स० १५४४ में रत्नशेखरसूरिके शिष्य हेमहंसगणिने एक विस्तृत टीका लिखी है। इस टीकामें इन्होंने मुहूर्त सम्बन्धी साहित्यका अच्छा संकलन किया है । लेखकने ग्रन्थके प्रारम्भमें ग्रन्थोक्तः अध्यायोंका संक्षिप्त नामकरण निम्न प्रकार दिया है।
दैवज्ञदीपकालिकां व्यवहारचर्यामारम्भसिद्धिमुदयप्रभदेवानाम् शास्तिक्रमेण तिथिवारमयोगराशि गोचर्यकार्यगमवास्तुविलग्नभिः ।
हेमहंसगणिने व्यवहारचर्या नामकी सार्थकता दिखलाते हुए लिखा है
"व्यवहार शिष्टजनसमाचारः शुभतिथिवारमादिषु शुभकार्यकरवादिरूपस्तस्यचर्या ।" यह ग्रन्थ मुहूर्त चिन्तामणिके समान उपयोगी और पूर्ण है। मुहूर्त विषयकी जानकारी इस अकेले ग्रन्थके अध्ययनसे की जा सकती है।
राजादित्य-इनके पिताका नाम श्रीपति और माताका नाम वसन्ता था। इनका जन्म कोंडिमण्डलके "यूविनबाग" नामक स्थानमें हुआ था। इनके नामान्तर राजवर्म, भास्कर १. प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, संपादक-जुगलकिशोर मुख्तार, प्रस्तावना, पृ० ९५-९६
तथा पुरातन वाक्य सूचीको प्रस्तावना, पृ० १०१-१०२ ।