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भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ इसके अतिरिक्त अनेक स्थानोंपर गीत, वाद्य, नृत्यका वर्णन आया है। बताया है कि जो जिनमंदिरमें गीत-वाद्य एवं नृत्यसे महोत्सव करता है, वह देव होकर उत्तम विमानमें वास करता हुआ परम उत्सव प्राप्त करता है । यथा
गन्धव्व-तूर-नटूं, जो कुणइ महस्सवं जिणाययणे ।
सो वरविमाणवासे, पावइ परमुस्सवं देवो' । 'समराइच्चकहा' में बहत्तर कलाओंका निर्देश आया है और बताया है कि नृत्य, गीत, वादित्र, पुष्करंगत और समताल-ये संगीतके अन्तर्गत थे। उत्सवों और त्यौहारोंके अवसर पर राजा, महाराजा, सेठ, सामन्तके अतिरिक्त साधारण जनता भी गीत नृत्यका आनन्द लेती थी । लोग अपनी-अपनी टोलियां बनाकर गाते-नाचते और आनन्द मनाते थे । इस ग्रंथमें वाद्य, नाट्य, गेय और अभिनय-ये संगीतके चार भेद बतलाए गए हैं। गुणसेन अपने साथियोंकी टोली द्वारा गायन वादन करता हुआ अग्निशर्माको चिढ़ाता है। समराइच्च कहाकी कथाका आरम्भ ही संगीतसे होता है और अन्तिम भवकी कथामें समरादित्यको संसारकी ओर उन्मुख बनानेके लिए उनके मित्र संगीत गोष्ठियोंकी योजना करते हैं । जिन गोष्ठियोंमें वीणा-वादन अभिनय एवं गीत गोष्ठी विशेष रूपसे आयोजित की जाती है। वाद्योंमें पटह, मृदंग, वंश, कांस्यक. तन्त्री, वीणा, दुन्दुभी, तूर्य आदि प्रधान हैं । विवाह, जन्मोत्सव, सामाजिक उत्सव आदि अवसरोंपर संगीतकी योजना की जाती थी । प्राकृतके सभी कथा ग्रंथों में गीत वाद्य और नृत्यका उल्लेख आता है । अपभ्रंश साहित्य जीवन्त है। इसमें समाजका जैसा सजीव चित्रण आया है वैसा अन्यत्र मिलना कठिन है । पुष्पदन्त, वीर, पद्मकीर्ति, धनपाल आदि सभी कवियोंने गीत वाद्य और नृत्यका उल्लेख किया है। पासणाहचरिउमें पद्मकीर्तिने लिखा है
महाणंदि णं णंदि घोसं सुघोसं झझवं झिझीवं रणंतं ठणंटं । वरं सुन्दरं सुन्दरंगं वरंग पसत्थं महत्थं विसालं करालं। हयाटट्टरी मद्दल ताल कंसाल उप्फाल कोलाहलो ताबिलं । काहलि भेरि भंभेरि भंभारवं भासुरा वीण-वंसा-मुढुंगारओ। सूसरो संख-सद्दो हुडुक्का कराफालिया झल्लरी रुंज सद्दालओ। बहु-विह-तूर-विसेसहिं मंगल-घोसहि पडिबोहिय गन्भेसरि ।
उट्ठिय थिय सीहासणि पवर-सुवासिणि वम्मदेवि परमेसरि ॥
इस काव्य ग्रन्थमें विभिन्न वाद्योंके साथ अभिनय और गीतोंका भी कथन आया है । पार्श्वनाथके जन्माभिषेकके अवसरपर देवोंने जो संगीत प्रस्तुत किया है वह आजकी संगीत गोष्ठियोंसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । विभिन्न वादक गायकोंकी संगति करते हैं और उनके स्वरके अनुसार वाद्योंका स्वर प्रस्तुत करते हैं
१. वही, पृष्ठ-२६०, पद्य संख्या-८४ । २. पासणाहचरिउ, प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी सीरीज, वाराणसी सन् १९६५ ई०, प्रो० प्रफुल्ल
कुमार मोदी द्वारा सम्पादित, पृ०-६२, संधि ८-७ ।