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भारतीय संस्कृति विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
बसुदेव अंगारक विद्याधरसे छूटकर चम्पापुरमें प्रविष्ट हुए और वहाँ चारुदत्त श्रेष्ठिकी पुत्री गन्धर्व सेनाको वीणावादनमें पराजित कर संगीत विद्याका उपदेश दिया ।
चार प्रकारके वाद्योंका निरूपण करते हुए बतलाया कि तत, अवनद्ध, धन और सुषिर वाद्य हैं। तार द्वारा बजाये जानेवाले वीणा आदि वाद्य तत; चमड़े से मढ़े मृदङ्ग आदि अवनद्ध, कांसे के बने झाँझ, मजीरा आदि घन एवं बाँसुरी आदि सुषिर कहलाते हैं " गन्धर्वको उत्पत्ति में वीणा वंश और गान ये तीन कारण हैं तथा स्वरगत तालगत और पदगत के भेदसे वह तीन प्रकारका माना गया है । वैण और शारीरके भेदसे स्वर दो प्रकार के हैं ।
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श्रुति, बृत्ति, स्वर, ग्राम, वर्ण, अलंकार, मूर्च्छना, धातु और साधारण आदि वैणस्वर के भेद माने गये हैं और जाति, वर्ण, स्वर, ग्राम, स्थान, साधारण क्रिया और अलंकार शरीर स्वरके भेद हैं । जाति, तद्धित, छन्द, सन्धि, स्तर, विभक्ति, सुबन्त, तिडन्त, उपसर्ग तथा वर्णं पदगत गान्धर्व की विधि हैं । २
अवाप, निष्काम, विक्षेप, प्रवेशन, शम्याताल, परावर्त, सन्निपात, सवस्तुक, मात्रा, अविदार्य, अंग, लय, गति, प्रकरण, यति, दो प्रकारकी गीति, मार्ग, अवयव, पदभाग और पाणि ये तालगत गान्धर्व के बाईस प्रकार हैं । इस प्रकार वाद्य सम्बन्धी गान्धर्वका प्रयोग कर वसुदेवने वीणा बजायी ।
प्रकारान्तरसे षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद ये सात प्रकारके स्वर बताये हैं । इन स्वरोंके प्रयोग के अनुसार बाबी, संवादी, विवादी और अनुवादी ये चार प्रकार हैं । मध्यम ग्राम में पञ्चम और ऋषभ स्वरका षड़ज ग्राममें, षड्ज तथा पञ्चम स्वरका संवाद होता है । षड्ज ग्रामके षड्ज स्वरमें चार, ऋषभमें तीन, गान्धार में दो, मध्यम में चार, पंचम में चार, , धैवतमें दो और निषाद में तीन श्रुतियाँ होती हैं ।
मध्यमग्रामके मध्य स्वरमें चार, गान्धारमें दो, ऋषभमें तीन, षड्जमें चार, निषादमें दो, धैवतमें तीन और पञ्चममें तीन श्रुतियाँ होती हैं । इस प्रकार षड्ज और मध्यम दोनोंग्रामों में बाईस बाईस श्रुतियाँ होती हैं । उक्त दोनों ग्रामोंको मिलकर १४ मूर्च्छनाएं भी बतलायी गयी हैं । इनमें षड्ज ग्राम की निम्नलिखित मूर्च्छनाएँ हैं
(१) उत्तरभद्रा (२) रजनी (३) उत्तरायता (४) शुद्धषड्जा ( ५ ) मत्सरीकृता (६) अश्वक्रान्ता (७) अभिरुद्गतो । मध्यमग्रामकी मूच्र्छनाओं में (१) सौवीरी, (२) हरिणाश्वा (३) कलोपनता (४) शुद्धमध्यमा ( ५ ) भार्गवी (६) पौरवी और ( ७ ) ऋष्यका हैं ।
षड्ज स्वर में उत्तरमन्द्रा, रिषभ, आधिरुद्गता, गान्धारमें अश्वक्रान्ता, मध्यममें मत्सरीकृता, पञ्चम में शुद्ध षड्जा, धैवतमें उत्तरायता और निषादमें रजनी मूर्च्छना होती है । ये मूच्र्छनाएँ षड्ज ग्राम सम्बन्धिनी हैं। मध्यम ग्रामके मध्यम, गान्धार, रिषभ, षड्ज, निषाद, धैवत और पंचमं स्वरमें क्रमसे सौवीरीको आदि लेकर वष्यका तक सात मूर्च्छनाएं होती हैं । अर्थात् मध्यममें सौवीरी, गान्धारमें हरिणाश्वा, ऋषभ में कलोपनता, षड्जमें शुद्धमष्ममा; निषादमें भार्गवी, धैवतमें पौरवी और पंचममें ऋष्यका मूर्च्छना होती है । इन १४ मूच्र्छनाओंके षाडव
९. वही १९ । १४२-१४३ २. वही १९ । १४७ - १४९