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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति २०९ और बल इन पाँचसे गुणा करनेपर साठ पत्रवाले; सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय और द्वैधीकरण इन छः पुष्पवाले एवं स्थान, क्षय और बृद्धि इन तीन फलवाले राजनीति वृक्षको जानता है, वही नीतिवान् नृप है । राज्याधिकार - का' निरूपण करते हुए बताया है कि सबसे प्रथम पुत्रका, अनन्तर भाईका, भाईके अभाव में विमाताके पुत्र – सौतेले भाईका, इसके अभाव में चाचाका, इसके अभावमें सगोत्री का, सगोत्रीके न रहने पर नाती--लड़कीके पुत्रका एवं इसके अभाव में किसी आगन्तुकका अधिकार होता है । इस प्रकार सोमदेव सूरिने राजनीतिका विस्तृत वर्णन किया है । १. सुतसोदरसपत्नपितृव्य कुल्यदौहित्रागन्तुकेषु पूर्वपूर्वाभावे भवत्युत्तरस्य राज्यपदाचाप्तिः ॥ - नीति० राजा स० सू० ८६ ३५
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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