________________
उनके साधनामय तेजस्वी जीवन को शब्दों की परिधि में बाँधना सम्भव नहीं है, हाँ उसमें अवगाहन करने की कोमल अनुभूतियाँ अवश्य शब्दतीत हैं। उनका चिन्तन फलक देश, काल, सम्प्रदाय, जाति, धर्म-सबसे दूर, प्राणिमात्र को समाहित करता है, एक युग बोध देता है, नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है, वैश्विक मानव की अवधारणा को ठोस आधार देता है जहाँ दूर-दूर तक कहीं भी दुरूहता नहीं है, जो है, वह है, भाव-प्रवणता, सम्प्रेषणीयता और रत्नत्रयों के उत्कर्ष से विकसित हुआ उनका प्रखर तेजोमय व्यक्तित्व, जो बन गया है करूणा, समता और अनेकान्त का एक जीवन्त दस्तावेज।
पूज्य उपाध्याय श्री का जीवन, क्रान्ति का श्लोक है, साधना और मुक्ति का दिव्य छन्द है तथा है मानवीय मूल्यों की वन्दना एवं जन-चेतना के सर्जनात्मक परिष्कार एवं उनके मानसिक सौन्दर्य एवं ऐश्वर्य के विकास का वह भागीरथ प्रयत्न जो स्तुत्य है, वंदनीय है और है जाति, वर्ग, सम्प्रदाय भेद से परे पूरी इन्सानी जमात की बेहतरी एवं उसके बीच “सत्वेषु मैत्री" की संस्थापना को समर्पित एक छोटा, पर बहुत स्थिर और मजबूती भरा कदम। गुरूदेव तो वीतराग साधना पथ के पथिक हैं, निरामय हैं, निर्ग्रन्थ हैं, दर्शन, ज्ञान और आचार की त्रिवेणी हैं। वे क्रान्तिदृष्टा हैं और परिष्कृत चिन्तन के विचारों के प्रणेता हैं। महाव्रतों की साधना में रचे-बसे उपाध्याय श्री की संवेदनाएं मानव मन की गुत्थियों को खोलती हैं और तन्द्रा में डूबे मनुज को आपाद-मस्तक झिंझोड़ने की ताकत रखती हैं। परम पूज्य उपाध्याय श्री के सन्देश युगों-युगों तक सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें, हमारी प्रमाद-मूर्छा को तोड़ें, हमें अन्धकार से दूर प्रकाश के उत्स के बीच जाने को मार्ग बताते रहें, हमारी जड़ता की इति कर हमें गतिशील बनाएं, सभ्य, शालीन एवं सुसंस्कृत बनाते रहें, यही हमारे मंगलभाव हैं, हमारे चित्त की अभिव्यक्ति है, हमारी प्रार्थना है।
xiiii