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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान भी किया है। ज्योतिषको गणनाके अनुसार विचार करनेपर श्रावण शुक्ला द्वितीयाके दिन मघा नक्षत्र मिल जाता है; क्योंकि आषाढ़ी पूर्णिमाको उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था। इससे आगे श्रवणादि नक्षत्र गणना करने पर उक्त तिथिको मघा आ जाता है । अतः यह तिथि शुद्ध है ।
तिलोयपण्णत्तिमें जन्मकल्याणक श्रावणशुक्ला एकादशीको' मघा नक्षत्रमें बताया गया है। उत्तरपुराणमें चैत्रशुक्ला एकादशीके२ दिन चित्रा नक्षत्र में जन्मकल्याणक माना गया है। वृन्दावन और मनरंगने भी चैत्रशुक्ला एकादशीको ही जन्मकल्याणककी तिथि बतलाया है। ज्योतिषकी सरणि द्वारा विचार करनेपर श्रावणशुक्ला एकादशीको मघा नक्षत्र नहीं आता है। बल्कि इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्रकी स्थिति आती है; क्योंकि श्रावणी पूर्णिमाको श्रवण नक्षत्र रहता है, अतः श्रावणशुक्ला एकादशीको ज्येष्ठा रहना चाहिए। अतएव नक्षत्र और तिथिका समन्वय नहीं होनेसे उक्त तिलोयपण्णत्तिवाली मान्यता अशुद्ध है।
उत्तरपुराणमें चैत्रशुक्ला एकादशीको पितृयोगमें भगवान्का जन्म होना कहा गया है। इस ग्रन्थके हिन्दी टीकाकार वसन्तजीने इस श्लोकके अर्थमें चित्रायांका अर्थ चित्रा नक्षत्र किया है, पर यह अर्थ अशुद्ध है। यहाँ चित्रायां यह विशेषणपद है, इसका सम्बन्ध मासके साथ है, अर्थात् नवमे-चैत्र महीनेकी शुक्लपक्षकी एकादशी तिथिको पितृयोग-मघा नक्षत्रके रहनेपर भगवान्का जन्म हुआ। चित्रायांका अर्थ चित्रा नक्षत्र कर लेनेपर पितृयोग-मघा नक्षत्रके साथ विरोध आयेगा। एक ही व्यक्तिका जन्म दो नक्षत्रोंमे नहीं हो सकता है । पितृयोग शब्द योग वाचक नहीं है, बल्कि नक्षत्र वाचक है । क्योंकि मघा नक्षत्रके स्वामी पितृ हैं, अतः मघा नक्षत्रको पितृयोग कहा जाता है। गणना करनेपर भी चैत्रशुक्ला एकादशीको मघा नक्षत्र आता है, चित्रा नहीं। चित्रा नक्षत्रकी स्थिति चैत्री पूर्णिमाको होती है। एक दूसरा सिद्धान्त यह भी है कि जिस नक्षत्रमें गर्भाधान होता है, उसी नक्षत्र में जन्म भी । भगवान्का गर्भकल्याणक मघा नक्षत्रमें हुआ है, अतः जन्मके दिन मघा या मघाके आस-पास वाला नक्षत्र अवश्य आ जायगा। गणित क्रिया द्वारा चैत्रशुक्ला एकादशीको मघा नक्षत्र आता है। अतः भगवान् सुमतिनाथ स्वामीको जन्म तिथि चैत्रशुक्ला एकादशी निर्विवादरूपसे है ।
पाँचवें तीर्थकर सुमतिनाथ भगवान्का तपकल्याणक तिलोयपण्णत्तिके अनुसार वैशाख
१. मेघप्पहेण सुमई साकेद पुरम्मि मंगलाए य ।
सावणसुक्केयारसिदिवसम्मि मघासु संजणिदो । तिलोय० -४-५३० २. नवमे मासि चित्रायां सज्ज्योत्स्नैकादशीदिने ।
त्रिज्ञानधारिणं दिव्यं पितृयोगे सतां पतिम् ॥ -उत्तर० ५१-२२-३३ ३. नासत्यान्तकवह्निधातृशशभृगुद्रा दितीज्योरगा;
ऋक्षेशाः पितरो भगोऽय॑मरवी त्वष्टा समीरः क्रमात् । शक्राग्नी खलु मित्रशक्रनिर्ऋतिक्षीराणि विश्वे विधिगोविन्दो वसुतोयपाऽजचरणाहिर्बुध्न्यपूषाभिधा ।
-मुहूर्त्तचिन्तामणि नक्षत्र प्रकरण श्लो० १