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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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उल्लेखनीय यह भी है कि चान्द्रमास गणना शुक्लपक्षकी प्रतिपदासे हो ली जाती थी । ग्यारहवीं शताब्दी से सुविधाके लिए कृष्णपक्षकी प्रतिपदासे मास गणना की जाने लगी है । अतः फाल्गुन शुक्लपक्ष की प्रतिपदासे गणना करनेपर 'नवमे मासि' पाठ और भी स्पष्ट हो जाता है । इसलिए भगवान् संभवनाथ की जन्मतिथि मार्गशीर्षी पूर्णिमा माननी चाहिए । कार्तिकी पूर्णिमा भ्रान्त है ।
भगवान् संभवनाथकी तपकल्याणक तिथि तिलोय पण्णत्त में मार्गशीर्षी पूर्णिमा' बतलायी गयी है । इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र था तथा दीक्षा ग्रहण करनेका काल तृतीय प्रहर बतलाया गया है । उत्तर पुराणसे भी इसी तिथिका समर्थन होता है । कवि वृन्दावनने मार्गशीर्षी पूर्णिमा तथा मनरंगने भी इसी तिथिको दीक्षा कल्याणक तिथि बतलाया है । अतः संभवनाथ स्वामीका तपकल्याणक मार्गशीर्षी पूर्णिमाको हुआ है । ज्योतिष की दृष्टिसे विचार करनेपर ज्येष्ठा नक्षत्र उक्त पूर्णिमाको नहीं आता है; इस दिन गणित द्वारा मृगशिर नक्षत्र ही आता है । इसलिए तिलोपत्ति 'जेट्टाए' के स्थानपर 'माग्गिसिए' या 'मिग्गाए' पाठ होना चाहिए । संशोधनके समय अर्थपर ध्यान नहीं दिया गया होगा । अतएव दीक्षाकल्याणक संभवनाथ स्वामीका मार्गशीर्षी पूर्णिमाको सम्पन्न हुआ ही माना जायगा ।
भगवान् संभवनाथ स्वामी के ज्ञानकल्याणकके सम्बन्ध में तिलोयपण्णत्तिमें मूल कोई गाथा उपलब्ध नहीं है । प्रक्षिप्तरूपमें बतलाया गया है कि कार्तिक कृष्णा पञ्चमी के दिन अपराह्न कालमें ज्येष्ठा नक्षत्र के रहते हुए भगवान् संभवनाथ स्वामीको ज्ञान सम्पन्न हुआ था । उत्तरपुराण में कार्त्तिक कृष्णा चतुर्थी के दिन मृगशिर नक्षत्र में सन्ध्याके समय केवलज्ञानकी प्राप्ति होना बतलाया गया है । कवि वृन्दावन और मनरंग ने भी कार्तिक कृष्णा चतुर्थीको ही केवलज्ञानकी प्राप्ति होना बतलाया है । ज्योतिष की दृष्टिसे कार्त्तिक कृष्णा चतुर्थी ही शुद्ध तिथि मालूम होती है । क्योंकि मृगशिर नक्षत्र इसी तिथिको पड़ता है । आश्विनी पूर्णिमाके दिन अश्विनी नक्षत्र था तथा कार्तिक कृष्णा प्रतिपदाको भरणी, द्वितीयाको कृत्तिका, तृतीयाको रोहिणी और चतुर्थीको मृगशिर नक्षत्र आता है । कार्तिक कृष्णा पञ्चमीको ज्येष्ठा नक्षत्र कभी नहीं आ सकता है, अतः यह तिथि अशुद्ध है ।
संभवनाथ स्वामीका निर्वाण कल्याणक चैत्रशुक्ला" षष्ठीको उनके जन्म नक्षत्र में बताया
१. मग्गसिरपुष्णिमाए तदिए पहरम्मि तदिय उववासे ।
जेट्टाए णिक्कतो संभवसामी सहेदुगम्मि वणे ।। - तिलोय० ४-६४६
२. जन्मर्थे कार्तिके कृष्णचतुर्थ्यामपरागः ।
३.
षष्ठोपवासो हत्वाघान् प्रापानन्तचतुष्टयम् ।—उत्तर० ४९-४१
कातिक कलि तिथि चौथ महान ।
घातिघात लिया. केवल ज्ञान ॥ - वृन्दावन चौ० वि० ४. कार्तिक वदी शुभ चौथके दिन ज्ञान उपजत जानि ।
५.
समवशरन विशाल अनुपम रचत धनपति आनि ॥ मनरंग सत्यार्थयज्ञ चेत्तस्स सुक्कछट्ठीअवरण्हे जम्मभम्मि सम्मेदे |
संपत्तो अपवग्गं संभवसामी सहस्सजुदो ॥ - तिलोय० ४ - ११८७