________________
जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
१४५
अवदान कल्पलतामें क्षेमेन्द्र ने भी सम्पदी ( सम्प्रति) को अशोक का पौत्र और उत्तराfधकारी माना है । इसने लिखा है
तत्पौत्रः संपदी नाम, लोभान्धस्तस्य शासनम् । कोषाध्यक्षेरवारयत् ॥८॥
दानपुण्यप्रवृत्तस्य, दाने निषिद्धे पौत्रेण, संघाय पृथ्वीपतिः । भैषज्यामलकस्यार्धं ददो सर्वस्वतां गतम् ||९||
— बोधिसत्त्वावदानकल्पलता पल्लव ७४ १० ५९७
जैन और बौद्ध साहित्य में कुणालका अन्धा होना बताया गया है । विमाता के विद्वेषके कारण कुणाल को अपने नेत्रोंसे हाथ धोना पड़ा था । दिव्यावदान और अवदानकल्पलतामें लिखा है कि कुणालकी आंखें बड़ी सुन्दर थीं, जिससे उसकी सुन्दर आँखों पर मोहित होकर अशोककी रानी तिष्यरक्षिताने उससे अनुचित प्रार्थना की, किन्तु कुणालने उसे स्वीकार नहीं किया । अपना अपमान समझकर रानी अत्यन्त असन्तुष्ट हुई और अवसर मिलने पर बदला लेनेकी बात तय कर ली। एक बार राजा अशोक बीमार पड़ा था, वैद्योंने नाना प्रकारसे चिकित्सा की, किन्तु कुछ लाभ नहीं हुआ । तिष्यरक्षिताने अपनी चतुराई और परिचर्यासे सम्राट् अशोकको निरोग कर लिया । प्रसन्न होकर महाराज अशोकने उसे सात दिन का राज्य दिया । राज्य प्राप्तकर तिष्यरक्षिताने तक्षशिला' के अधिकारीवर्गके पास आज्ञापत्र भेजा कि
शुरू किया । मन्त्रियोंने कुणाल पुत्र संपदीसे कहा- राजन् । राजा अशोक अब थोड़े दिन ही रहनेवाला है, राजाओं का खजाना बल है, अतः कुर्कुटाराम जो द्रव्य भेजा जा रहा है, उसे रोकना चाहिये । मन्त्रियोंकी सलाहसे युवराज सम्पदीने कोषाध्यक्षको धन देनेसे रोक दिया । इस पर अशोकने अपने भोजन करनेके सोने, चांदी और अन्य धातुओं के पात्रों को भी दान कर दिया। अब राजाके पास आधा आँवला शेष रह गया। उसने मंत्रियों और प्रजागणको एकत्रित कर कहा -- बताओ इस समय पृथ्वीमें सत्ताधारी कौन है ? सभीने एक स्वरसे कहा - आपही ईश्वर सत्ताधारी राजा हैं । अशोक – तुम दाक्षिण्यसे
।
झूठ क्यों बोलते हो ? इस समय हमारा प्रभुत्व अर्धामलक पर है । इतना कहकर अशोकने उसे भी पास के एक व्यक्ति द्वारा कुर्कुटाराम संघके पास भेज दिया । संघने यूषमें मिलाकर आपस में बाँट लिया । राजा अशोकने अन्तिम समय में राधगुप्त अमात्यके समक्ष चार करोड़ स्वर्णदानके बदलेमें समस्त पृथ्वीका दान कर दिया अशोककी मृत्युके उपरान्त अमात्योंने संघ ४ करोड़ सुवर्ण देकर पृथ्वीको छुड़ाया और बादमें सम्पदीका राज्याभिषेक किया गया । १. जैन ग्रन्थोंमें कुणालको अवन्तिमें अन्धा किया गया बताया हैं, किन्तु बौद्ध ग्रन्थोंमें तक्षशिला में । इन दोनों कथनोंमें कोई अन्तर नहीं हैं; क्योंकि प्राचीन भारतमें अवन्ति और तक्ष शिला एक ही नगरी थी। बौद्ध साहित्यमें अवन्तिके ही अर्थ में तक्षशिलाका प्रयोग हुआ हैं । वैजयन्ति कोशमें बताया भी है- "अवन्ती स्यात्तक्षशिला " वैजयन्ती
- दिव्यावदान २९
१९