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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
प्रकट होंगे । प्रातःकाल होनेपर चामुण्डरायने माताके आदेशानुसार नित्य कर्मसे निवृत्त हो स्नान पूजन कर छोटी पहाड़ीकी एक शिलापर अवस्थित हो दक्षिण दिशाकी ओर मुंह कर एक बाण छोड़ा जो विन्ध्य गिरिके मस्तक परकी शिलामें लगा । बाणके लगते ही शिला खण्डके भीतरसे गोम्मट स्वामीका मस्तक दृष्टिगोचर हुआ। अनन्तर हीरेके छेनी और मोतीकी हथौड़ीसे शिलाखण्डको हटाकर गोम्मट देवकी प्रतिमा निकाल ली गयी । इसके पश्चात् माताकी आज्ञासे वीरवर चामुण्ड रायने दुग्धाभिषेक किया।
इस पौराणिक घटनामें कुछ तथ्य हो या न हो, पर इतना निर्विवाद सत्य है कि चामुण्डरायने अपनी माता कालल देवीकी आज्ञा और प्रेरणासे ही श्रवणबेलगोलामें गोम्मटेश्वरकी मूत्ति स्थापित करायी थी। इस देवीने जैन धर्मके प्रचारके लिए भी कई उत्सव किये थे।
राजकीय महिलाओंमें जैन धर्मके संरक्षणमें क्रियात्मक योग देनेवाली पोचब्बरसी राजेन्द्र कौंगालवकी माता थी। इसने सन् १०५० ई० में एक बसदिका निर्माण कराकर उसकी व्यवस्थाके लिए भूमि प्रदान की। कदम्ब शासक कीर्तिदेवकी बड़ी रानी मालल देवीने सन् १०७७ ई० में कुप्पटूरमें पद्मनन्दि सिद्धान्तदेव द्वारा पार्श्वनाथ चैत्यालयका निर्माण कराया था।
शान्तरवंशकी महिला चट्टरदेवीका नाम अत्यन्त गौरवके साथ लिया जाता है। यह रक्कस गंगको पौत्री और पल्लव नरेश काडुवेट्ठीकी पत्नी थी। पुत्र और पतिकी मृत्यु होनेपर अपनी छोटी बहनकी चार सन्तानोंको अपना समझा और उनके साथ शान्तरोंकी राजधानी पोंबुच्चपुरमें जिनालयोंका निर्माण कराया । उसने अनेक मन्दिर, बसदियाँ, तालाब, स्नानगृह तथा गुफाएं बनवायीं तथा आहार, औषध, शिक्षा एवं आवासको व्यवस्था की। चट्टल देवीके गुरु श्रीविजय भट्टारक थे । ये रक्कस गंग और नन्न शान्तरसके भी गुरु थे।
सन् १११२ ई० में गंगवाडीके राजा भुजबल गंगकी महादेवी जैन मतकी संरक्षिका थी। लेखमें उसे जिनेन्द्र चरणोंकी भ्रमरी कहा है। उसके पति राजा हेम्मकी दूसरी पत्नीका नाम बाचल देवी था। उसने बन्निकरेमें एक सुन्दर जिनालयका निर्माण कराया था। इस जिनालयके लिए उसके पतिने, गंग महादेवीने तथा प्रमुख अधिकारियोंने मिलकर बुदनगेरे गांव, कुछ अन्य भूमि एवं धन प्रदान किया था ।
शान्तर राजकुमारी चम्पादेवीका नाम भी प्रसिद्ध है। यह राजा तैलकी पुत्री तथा विक्रमादित्य शान्तरकी बड़ी बहन थी। एक अभिलेखके अनुसार इसकी अष्ट प्रकारी पूजा, जिनाभिषेक एवं चतुर्विध भक्तिमें अत्यन्त आस्था थी। इसकी पुत्री वाचाल देवी दूसरी अतिमम्बे थी। वह प्रतिदिन सूर्य निकलते ही जिन भगवान्की पूजा किया करती थी। दोनों मां बेटी बादिन सिंह अजितसेन पण्डित देवकी शिष्याएं थीं।
जैन सेनापति गंगराजकी पत्नी लक्ष्मीमतीका नाम भी उल्लेखनीय है । यह शुभचन्द्रकी शिष्या थी। इसने श्रवणबेलगोलामें एक जिनालयका निर्माण कराया था और उसके पतिने इसके लिए दान दिया था । वस्तुतः लक्ष्मीमती अपने युगकी अत्यन्त प्रभावशालिनी नारी थी। गंगराजके बड़े भाईकी पत्नी अक्कणब्बे जैन धर्मको संरक्षिकाओंमें गणनीय है। वह सेनापति बोप्पकी माता थी। श्रवणबेलगोला के ४३ वें अभिलेखमें अक्कणब्बेको जैन धर्मका बड़ा भारी