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उमेश से उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज सफरनामा
एक अनेकान्तिक साधक का
एकान्त, एकाग्र और सयंमी जीवन की विलक्षण मानवीय प्रतीति बन कर एक संकल्पशील के रूप में उपाध्याय श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज जब लोक जीवन में अवतरित हुए तो यह धरती उद्भासित हो गयी उनकी तपस्या की प्रभा और त्याग की क्रांति से। त्याग, तितिक्षा और वैराग्य की सांस्कृतिक धरोहर के धनी तीर्थंकरों की श्रृंखला को पल्लवित और पुष्पित करती दिगम्बर मनि परम्परा की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली कड़ी के रूप में पूज्य उपाध्याय श्री ने अपने आभामण्डल से समग्र मानवीय चेतना को एक अभिनव संदृष्टि दी है और संवाद की नई वर्णमाला की रचना करते हुए उन मानवीय आख्यों की संस्थापना की है जिनमें एक तपस्वी के विवेक, एक योगी के संयम और युगचेतना की क्रान्तिदर्शी दृष्टि की त्रिवेणी कासमवा है। गुरुदेव की उपदेश-वाणी प्रत्येक मनुष्य का झंकृत करसही है क्योंकि वह अन्तःस्फूर्त है और है सहज तथा सामान्य - ऊहापोह से मुक्त, सहजग्राह्य और बोधगम्य जो मनुष्य को ज्ञान और पाण्डित्य के अहंकार से मुक्त कर मानवीय सद्भाव का पर्याय बनाने में सतत् प्रवृत्त है। यह वाणी वर्गोदय के विरूद्ध एक ऐसी वैचारिक क्रान्ति है जहाँ सभी के विकास के पूर्ण अवसर हैं, बन्धनों से मुक्ति का अह्वान है, जीवन समभाव है, जाति-समभाव है जो निरन्तर दीपित हो रही हैउनकी जगकल्याणी और जनकल्याणी दीप्ति से।
चम्बल के पारदर्शी नीर और उसकी गहराई ने मुरैना में वि.सं 2014 वैशाख सुदी दोयज को जन्मे बालक उमेश को पिच्छि कमण्डलु की मैत्री के साथ अपने बचपन की उस बुनियाद को मजबूत कराया जिसने उसे निवृत्ति मार्ग का सहज, पर समर्पित पथिक बना दिया। शहर में आने वाले हर साधु-साध्वी के प्रति बचपन से विकसित हुए अनुराग ने माता अशर्फी बाई और पिता शान्तिलाल को तो हर पल सशंकित किया पर बालक उमेश का आध्यात्मिक अनुराग प्रतिक्षण पल्लवित एवं पुष्पित होता गया और इसकी परिणति हुई सन् 1974 में उस प्रतीक्षित फैसले से जब किशोर उमेश ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया, दो वर्षों बाद पांच नवम्बर उन्नीस सौ छिहत्तर को ब्रह्मचारी उमेश ने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की आ. श्री सुमतिसागर जी से। उमेश से रूपान्तरित हुए क्षुललक गुणसागर ने बारह वर्षों तक पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, पं. लक्ष्मीकान्त जी
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