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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
८५ पद्मचरितमें बताया है कि मगध देशमें कस्तूरी, सुगन्धित द्रव्य, वस्त्र, गज, अश्व, ऊँट, गाय, आदिके व्यापारका वर्णन आया है।
मगध जनपदमें कृषिकी सुव्यवस्था थी। कूपोंमें सिंचाईके लिए रहटोंका प्रबन्ध था । उपजाऊ भूमिके होनेपर भी सिंचाईका प्रबन्ध किया था । गन्ना, धान, गेहूँ, चना, कोदों, मूंग, उड़द, मौंठ आदि समस्त धान्य उत्पन्न होते थे। मगधमें शूक धान्य, शिम्बीधान्य और तृणधान्य तीनों ही प्रकारके धान्य उत्पन्न होते थे। शूक धान्यके दो भेद हैं-शालि और ब्रीहि । हेमन्तमें पकनेवाले धानको शालि कहते हैं। मगधका शालिधान प्राचीनकालमें अतीव प्रसिद्ध था। ऐसा कहा जाता है कि महाशालि मगधसे यूनानी लोगोंके साथ यूनान तक गया।
शूक धान्योंमें गोधूम और यवकी गणना है। शिम्बी धान्यमें मूंग, मसूर, अरहर, चना, कुलत्थी आदि परिगणित हैं। मगध देशमें अनाजके ढेर खलिहानोंमें लगे रहते हैं । भूमिकी उर्वराशक्तिका वर्णन करते हुए पद्मचरितमें लिखा है
उर्वरायां वरीयोभिः यः शालेयरलङ्कृतः। मुद्गकोशीपुटैर्यस्मिन्नुद्देशाः कपिलत्विषः ।। अधिष्ठितः स्थलीपृष्ठः श्रेष्ठगोधूमधामभिः ।
प्रशस्यैरन्यसस्यैश्च युक्तः प्रत्यूहजितैः ।।-पद्म० २।७९ । मगधकी उपजाऊ भूमिमें धान, मूंग, मोठ आदि अन्न पर्याप्त मात्रामें उत्पन्न होते हैं। गेहूँकी खेती इस जनपदमें विशेषरूपसे होती है । रक्षक खेतोंकी रखवाली करते हुए मधुर संगीतका आनन्द लेते थे। दुधारू पशुओंके स्तनोंसे दूध टपकता रहता था, जिससे मगधकी भूमि सदा सुगन्धित रहती थी।
___ मगध जनपद आर्थिक दृष्टिसे अत्यन्त सुखद था । साधारण जनता भी गन्ध, माल्य, दुग्ध आदि पदार्थोंका उपयोग करती थी। पथिक विश्रामके साथ भोजन भी प्राप्त करते थे। मगधवासियोंको आवश्यकताकी समस्त वस्तुएं उपलब्ध हो जाती थीं । नाना प्रकारके फल, ताड़वृक्ष एवं नारियल सभीको आनन्दित करते थे।
पथिकोंके लिए प्याऊ, भोजन-शालाएं और विश्रामशालाएं भी निर्मित थीं। अतिथि जन इस जनपद में घर जैसा आनन्द प्राप्त करते थे । यहाँके भवन, आगार, चैत्यालय, सरोवर, परिखा आदि मनोरम और आरामप्रद थे । भोजन-पान और वेष-भूषा
मगध जनपदमें सभी प्रकारके खाद्यान्न उत्पन्न होते थे, अतः वहाँके निवासी चावल, रोटो, दाल आदिका व्यवहार करते थे । गौतमस्वामी चरित, मुनिसुव्रत काव्य और पद्मचरितमें अन्न भोजन, पक्वान्न भोजन और फल भोजन इन तीनों प्रकारके भोजनका वर्णन आया है। नायाधम्म कहामें धन्य सार्थवाहकी कथा आयी है, जिसने अपने सगे-सम्बन्धियोंको बहभोजके
१. पद्मचरितम्-२।२५, ३१ २. वही २०६;
___३. वही २।४, ८॥ ४. Gode. Studies in Indian cultural history vol I, P.265