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भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
वैशाली संघ के तत्त्वावधानमें विहार सरकार ने यहाँ 'प्राकृत शोध संस्थान की स्थापना की है । यह स्थान मुजफ्फरपुर जिलेमें पड़ता है ।
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कुलुआ पहाड़
यह पर्वत गयासे ३८ मील हजारीबाग जिलेमें है । यह पहाड़ जंगलमें है, इसकी चढ़ाई दो मील है । यहाँ सैकड़ों जैन मंदिरोंके भग्नावशेष पड़े हुए हैं । यहाँ १०वें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथने तप करके केवलज्ञान प्राप्त किया था । यहाँ पार्श्वनाथ स्वामीकी एक अखण्डित अत्यन्त प्राचीन पद्मासन २ फुट ऊँची कृष्णवर्णकी प्रतिमा है । इस प्रतिमाको आजकल जैनेतर 'द्वारपाल' के नामसे पूजते हैं। यहाँ एक छोटा दि० जैन मंदिर पाँच कलशोंका शिखरबंद बना हुआ है, यह मंदिर प्राचीन है। इसमें सन् १९०१ की श्री सुपार्श्वनाथ भगवान्की ९ इंच चौड़ी पद्मासन मूर्ति विराजमान थी, परन्तु अब केवल आसन ही रह गया है। मंदिरके सामने पर्वतपर एक रमणीक ३०० x ६० गजका सरोवर है । यहाँ पर अनेक खण्डित जैन मूर्तियोंके अवशेष पड़े हुए हैं। एक मूर्ति एक हाथकी पद्मासन है, आसन पर संवत् १४४३ लिखा मालूम होता है । यहाँकी सबसे ऊँची चोटीका नाम 'आकाशालोकन' है । यह नीचेसे १३ मील ऊँची होगी । इस शिखरपर एक चरणपादुका बहुत प्राचीन है । चरणचिह्न " ८x?" हैं । शिखरसे नीचे उतरनेपर महान् शिलाकी एक ओरकी दीवालमें १० दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ खण्डित अवस्था में हैं । इन प्रतिमाओं पर नागरीलिपिमें लेख है, जो घिस जानेके कारण पढ़ने में नहीं आता है । केवल निम्न अक्षर पढ़े जा सकते हैं ।
" श्रीमत् महाचंद कलिद सुपुत्र सध घर मई सह सिद्धम् "
इस स्थानको पण्डोंने दशावतार गुफा प्रसिद्ध कर रखा है । वृहशिलाकी दूसरी ओर भी दीवाल में १० प्रतिमाएँ हैं । इस स्थानसे प्राकाशालोकन शिखर तीन मील है । मार्च १९०१ की इंडियन एण्टीक्वेरटीमें इस तीर्थ के सम्बन्धमें लिखा गया है
"आकाशालोकन शिलाकी चरणपादुका को पुरोहित लोग कहते हैं कि विष्णुकी है, परन्तु देखनेसे ऐसा निश्चय होता है कि यह जैनतीर्थंकरकी चरणपादुका है और ऐसा ही मान कर इसकी असल में पूजा होती 1"
"पूर्व कालमें यह पहाड़ अवश्य जैनियोंका एक प्रसिद्ध तीर्थ रहा होगा, यह बात भले प्रकार स्पष्टतया प्रमाणित है । क्योंकि सिवाय दुर्गादेवीकी नवीन मूर्त्तिके और बौद्ध मूर्त्तिके एक खंडके अन्य सर्व पाषाणकी रचनाके चिह्न, चाहे अलग पड़े हुए, चाहे शिलाओं पर अंकित हों वे सब तीर्थङ्करों को ही प्रकट करते हैं ।"
आज इस पवित्र क्षेत्रके पुनरुद्धार और प्रचारकी आवश्यकता । भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी को इस क्षेत्रकी ओर ध्यान देना चाहिये ।
श्रावक पहाड़
गयाके निकट रफीगंज से ३ मील पूर्व श्रावक नामका पहाड़ है । यह एक ही शिलाका पर्वत है, २ फर्लांग ऊँचा होगा। यहाँ वृक्ष नहीं है, किनारे-किनारे शिलाएँ हैं । पहाड़के नीचे जो गाँव बसा है, उसका नाम भी श्रावकपुर है । पर्वतके ऊपर ८० गज जाने पर एक गुफा है, जो १० X ६ गज है । इसमें एक जीर्ण दिगम्बर जैन मंदिर है, जो इस समय ध्वस्त प्रायः