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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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पहला पहाड़ विपुलाचल है । इस पर्वतपर चार दिगम्बर जैन मन्दिर हैं । नीचे छोटेमन्दिरमें श्यामवर्ण कमलके ऊपर भगवान् महावीर स्वामीकी चरण पादुका है । थोड़ा ऊपर जानेपर तीन मन्दिर हैं । पहले मन्दिर में चन्द्रप्रभुकी चरणपादुका प्राचीन है । मन्दिर भी प्राचीन है । मध्यवाले मन्दिर में चन्द्रप्रभु स्वामीको श्वेतवर्णकी मूर्ति वेदीमें विराजमान है । वेदीके नीचे दोनों ओर हाथी खुदे हुए हैं, बीचमें एक वृक्ष है । बगलमें एक ओर सं० १५४८ की श्वेतवर्णकी चन्द्रप्रभुस्वामीकी मूर्ति है । यहाँ एक पुरानी श्यामवर्णकी भगवान् महावीर स्वामीकी भी मूर्ति है । यह मूर्ति ई० सन् ८ वीं शतीकी प्रतीत होती है । अन्तिम मन्दिरकी वेदिका श्वेतवर्णकी महावीर स्वामीकी मूर्ति विराजमान है । बगलमें एक ओर श्यामवर्ण मुनिसुव्रतनाथकी मूर्ति और दूसरी ओर उन्हींके चरण हैं । मूर्ति प्राचीन और चरण नवीन हैं ।
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दूसरे रत्नगिरिपर दो मन्दिर हैं - एक प्राचीन मन्दिर है और दूसरा नवीन । नवीन मन्दिरको श्रीमती ब्र० पं० चन्दाबाई जी ने बनवाया है इसमें मुनिसुव्रत स्वामीकी श्यामवर्णकी भव्य और विशाल प्रतिमा विराजमान है । पुराने मन्दिर में श्यामवर्ग महावीर स्वामीकी चरणपादुका है।
तीसरे उदयगिरिपर एक मन्दिर है । इसमें श्री शांतिनाथ और पार्श्वनाथ स्वामीकी प्राचीन प्रतिमाएँ एवं आदिनाथ स्वामीके चरणचिह्न हैं । एक महावीर स्वामीकी भी खड्गासन श्यामवर्णकी प्राचीन प्रतिमा है । यहाँ नया मन्दिर भी कलकत्ता निवासी श्रीमान् सेठ रामबल्लभ रामेश्वर जी की ओरसे बना है, पर उसकी अभी प्रतिष्ठा नहीं हुई है ।
चौथे स्वर्णगिरिपर दो मन्दिर हैं । एक मन्दिर फिरोजपुर निवासी लाला तुलसीरामने बनवाया है । इस नये मन्दिर में शांतिनाथ स्वामीकी श्यामवर्णकी प्रतिमा तथा नेमिनाथ और आदिनाथ स्वामी चरणचिह्न हैं । यहाँ एक प्राचीन खड्गासन मूर्ति भी है । पुराने मन्दिरमें भी भगवान् महावीरके नवीन चरणचिह्न हैं । यह मन्दिर छोटा-सा और पुराना है ।
पाँचवें वैभारगिरिपर एक मन्दिर है । यहाँ एक चौबीसी प्रतिमा, महावीर स्वामी, नेमिनाथ स्वामी और मुनिसुव्रत स्वामीकी श्यामवर्णकी प्राचीन प्रतिमाएँ हैं । नेमिनाथ स्वामीके चरणचिह्न भी हैं ।
पहाड़ी के नीचे दो मन्दिर हैं । एक मन्दिर धर्मशालाके भीतर है तथा दूसरा धर्मशाला के बाहर विशाल बगीचे में । बाहर वाले मन्दिरको देहली निवासी लाला न्यादरमल धर्मदासजीने एक लाख रुपयेसे ६ फरवरी सन् १९२५ में बनवाया है। इस मन्दिरमें पाँच वेदिकाएँ हैं । पहली वेदीके बीच में श्यामवर्ण नेमिनाथ स्वामीकी प्रतिमा है, यह पद्मासन मूर्ति १३ फुट ऊँची संवत् १९८० में प्रतिष्ठित की गयी है । इसके दाईं ओर शांतिनाथ स्वामी और बाईं ओर महावीर स्वामीकी प्रतिमाएँ हैं । ये दोनों प्रतिमाएँ विक्रमकी २० वीं शती की हैं । इस after धातुमयी कई छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं, जो सं० १७८९ की हैं। इस वेदीमें दो चाँदीकी भी प्रतिमाएँ हैं ।
दूसरी वेदीमें चन्द्रप्रभु स्वामीको श्वेतवर्णकी ३ फोट ऊँची प्रतिमा है । इसकी प्रतिष्ठा वी० सं० २४४९ में हुई है । चतुर्मुखी धातु प्रतिमा भी इस वेदी में है ।