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________________ ६६ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान भीतरी दरवाजे के ऊपर एक प्राचीन मूर्ति उत्कीर्णित है । पासकी एक गुफामें मुनिराजों के चरणचिह्न अंकित हैं । मन्दारगिरिसे लगभग दो मीलकी दूरीपर बौंसी गांव में दि० जैन धर्मशाला एवं विशाल भव्य मन्दिर है । यात्रियोंके ठहरनेका प्रबन्ध यहीं पर है । धर्मशालाके मन्दिरमें वी० सं० २४६९ की गेहुआंवर्णकी वासुपूज्य स्वामीकी पद्मासन मूर्ति है । और भी कई मूर्तियाँ एवं चरण पादुकाएँ हैं । मन्दिरके बाहिरी दरवाजेके ऊपर दोनों ओर दो पाषाणके हाथी अपने सुण्डादण्डको ऊपर की ओर उठाये खड़े हुए हैं, बीच संगमरमर पर दि० जैन मन्दिर लिखा गया है । बड़े शिखरके नीचे माजिक में कटी हुई फूल पत्तियोंका शिखर बहुत ही भव्य और चित्ताकर्षक है । मन्दिरके सामने बना हुआ छोटा संगमरमरका चबूतरा दूरसे देखनेपर बहुत ही सुहावना मालूम पड़ता है । यहाँ एक अन्य अधूरा मन्दिर पड़ा हुआ है, इस मंदिरको पत्थर ही पत्थर से बनवाने - की व्यवस्था श्री सेठ तलकचन्द वारामती (पूना) वालोंने की थी; पर कालचक्र के प्रभावसे यह मंदिर अभी अपूर्ण ही पड़ा है । जैनेतरोंके लिए भी यह क्षेत्र पवित्र और मान्य है । यहाँ सीताकुण्ड और शेख कुण्ड नामक दो शीतल जलके कुण्ड हैं । पर्वतकी तलहटी में पापहरणी पुष्करणी नामक तालाब है । कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय मथानीका कार्य इसी पर्वतसे लिया गया था । बीचमें कई शताब्दियों तक जैनोंकी शिथिलताके कारण यह तीर्थ अन्धकाराच्छन्न हो गया था । २० अक्तूबर सन् १९११ में सबलपुर के जमींदारोंसे इसकी रजिस्ट्री करायी गयी है । इस तीर्थको पुनः प्रकाशमें लाने का श्रेय स्व० बा० देवकुमार जी आरा, स्व० राय बहादुर केसरे हिन्द सखीचन्द्रजी कलकत्ता एवं श्री बाबू हरिनारायण जी भागलपुरको है । अब यह तीर्थ दिनों दिन उन्नति करता जा रहा है । राजगृह यह स्थान पटना जिलेमें है । ई० आर० रेलवेके बख्तियारपुर जंक्शनसे विहार लाइट रेलवेका अन्तिम स्टेशन है । यहाँ पंचपहाड़ी की तलहटी में दिगम्बर और श्वेताम्बर जैनधर्मशालाएँ एवं जिनमंदिर हैं । पाँचों पहाड़ोंपर भी दिगम्बर और श्वेताम्बर मन्दिर हैं । राजगृहका पूर्व इतिवृत्त अत्यन्त गौरवपूर्ण है । इस नगरको कुशात्मज वसुने गंगा और सोन नदी के संगमपर बसाया था । महाराज श्रेणिकने पंच पहाड़ीके मध्य में नवीन राजगृह नगरको बसाया, जो अपनी विभूति और रमणीयतामें अद्वितीय था । महाराज वसुसे लेकर श्रेणिकतक यह उत्तर भारतका शासन केन्द्र रहा । जब श्रेणिक के पुत्र अजातशत्रुने मग की राजधानी चम्पाको बनाया, उस समय किसी कारणवश आग लग जानेसे यह नगर नष्ट हो गया । राजगृहका भगवान् महावीर के पहले भी जैनधर्मसे सम्बन्ध रहा है। रामायण काल में भगवान् मुनिसुव्रतनाथके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान ये चार कल्याणक यहीं हुए थे । पश्चात्
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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