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________________ 900 जैन श्रमण : स्वरुप और समीक्षा 131. वही - लेख सं. 122, 123, 132 132. वही - लेख सं. 94 133. जै. शि. सं. भाग 4, लेख सं. 55 134. दक्षिण भारत में जैन धर्म पृ. 181 135. जैन साहित्य का इतिहास पृ. 276 136. जैन सिद्धान्त भास्कर भा. 2, किरण 4, पृष्ठ 28-29 137. पं. नाथूराम प्रेमीजी के अनुसार दिल्ली के उत्तर में जमुना के किनारे काष्ठा नगरी थी। जिस पर नागवंशियों की एक शाखा पर राज्य था। 14 वीं सदी में "मदन पारिजात" निबंध यही लिखा गया-जै. शि. सं. 3 पृ. 68 138. दक्षिण भारत में जैन धर्म पृ. 178 139. जै. शि. सं. भाग 3 . 26 140. दक्षिण भारत में जैन धर्म पृ. 179 के आधार पर। 141. दर्शनसार गा. 25-26 142. जै. शि. सं. भाग 3, ले. सं. 166 ( सन् 990) 143. वही ले. 178 ( सन् 1040) 144. "जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास के आधार पर ले. भागचन्द्र भास्कर चित्रसं.1 । ।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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