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________________ 74 जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिया के 11 वें संस्करण के 127 पृष्ठ पर लिखा है कि श्वेताम्बर लोग छठवीं शताब्दी से पाए गये हैं। दिगम्बरी वही प्राचीन निर्ग्रन्थ हैं जिनका वर्णन बौद्ध की पाली पिटकों में आया है122 मिस्टर वी. लेविस राइस सी.आई.ई ने कहा है कि-"समय के फेर से दिगम्बर जैनों में से एक विभाग उठ खडा हुआ जो इस प्रकार के कट्टर साधुपने से विरुद्ध पड़ा। इस विभाग ने अपना नाम "श्वेताम्बर" रखा। यह बात सत्य मालुम होता है। कि अत्यन्त शिथिल श्वेताम्बरियों से कट्टर दिगम्बरी पूर्व के हैं123 इसी प्रकार अलब्रेट बेवर लिखते हैं कि "दिगम्बर लोग बहुत प्राचीन मालुम होते हैं, क्योंकि न केवल ऋग्वेद संहिता में इनका वर्णन "मुनयः वातवसनाः" अर्थात पवन ही है वस्त्र जिनके इस तरह आया है किन्तु सिकंदर के समय में जो हिन्दुस्तान के जैन सूफियों का प्रसिद्ध इतिहास है उससे भी यही सिद्ध होता है124 इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिया जिल्द 25, संस्करण 11, (सन् 1911) में लिखा है कि. "जैनों के दो बड़े भेद हैं एक दिगम्बर दूसरा श्वेताम्बर। श्वेताम्बर थोडे काल से शायद बहुत करके ईसा की 5 वीं शताब्दी से प्रगट हुआ है। दिगम्बर निश्चय से लगभग वे ही निर्ग्रन्थ हैं जिनका वर्णन बौद्धों की पाली पिटकों में आया है। इस कारण ये लोग (दिगम्बर) ईसा से 600 वर्ष पूर्व के तो होने ही चाहिए। 25 इसी प्रकार का विलसन साहब का मन्तव्य है कि-" जैनों के प्रधान दो भेद हैं दिगम्बर और श्वेताम्बर। दिगम्बरी बहुत प्राचीन मालूम होते हैं और बहुत अधिक फैले हुए हैं। सर्व दक्षिण के जैनी दिगम्बरी मालुम होते हैं। यही स्थिति पश्चिम भारत के बहुत से जैनों की है। हिन्दुओं के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों में जैनों को साधारणतया दिगम्बर या नग्न लिखा है126 निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता . चूंकि महावीर ने वात...ग अर्थात् सम्पूर्ण नग्नता का ही उपदेश दिया था। उस मार्ग के साक्षात् अनुयायी श्रमणों का अन्तर्वाह्य जीवन भी वीतरागी व्यक्तित्व लिये हुए होना चाहिए। वीतरागी का वेष निस्पृह एवं अपरिग्रही ही होगा अतः महावीर द्वारा उपदिष्ट श्रमण स्वरूप में मूलतः दिगम्बर सम्प्रदाय ही आता है। तथा जैन धर्म की प्रसिद्ध वीतरागता दिगम्बर सम्प्रदाय के ही आदर्श अर्हन्त, और उनकी प्रतिमाओं, महाव्रतधारी श्रमणों तथा उनके साहित्य में ही पायी जाती है। ऐसी वीतरागता श्वेताम्बर सम्प्रदाय में नहीं है।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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