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प्रकाशकीय :
मुक्ति हमें नहीं चाहिए, क्योंकि हम मुक्त स्वभावी हैं। बस, हमें इस बात की श्रद्धा अन्तर में समानी है जाग्रत करनी है, और यहीं से मुक्ति की शुरुआत होती है। इसकी 74 पूर्णता ही मुक्ति है, जो मुक्त स्वभाव का प्रकाशन मात्र है। वस्तु स्वातन्त्र्य के इस तथ्य को जनहित में प्रचारित करते हुए लोकोपकारी साहित्य को प्रकाशित करते रहना ही " मुक्ति प्रकाशन" का मुख्य लक्ष्य है, और हम उसकी ओर अग्रसर हुए हैं। जिसके प्रयास रूप में इस संस्थान का यह पुष्प है। उस मुक्ति पथ पर चलते हुए " मुक्तिदूत" के व्यक्तित्व पर हुए इस शोध कार्य को प्रकाशित हुए हम अत्यधिक गौरव व प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं ।
डॉ. योगेश चन्द्र जैन दर्शन के उदीयमान विद्वान लेखक व वक्ता हैं, साथ ही समन्वयवाणी के सह-सम्पादक भी हैं। इनके लगभग 15 शोध - निबन्ध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इनके कुशल सम्पादन में सज्जनचित्त वल्लभ, अध्यात्म अमृत, कुन्दकुन्द सूक्तिसुधा, (हिन्दी, गुजराती, कन्नड़) चर्चा संग्रह आदि ग्रन्थ विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। और " जैन दर्शन में बन्ध - मोक्ष" इनकी अत्यधिक प्रशंसित कृति है। इस तरह पंच पुष्पों के रूप में चौतीस हजार प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। जो इनकी लोकप्रियता का प्रमाण है । अब हमें इनकी कृति "जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा" को प्रकाशित करते हुए प्रसन्नता हो रही है। हमारे आग्रह पर इसको और अधिक परिवर्धित व परिष्कृत किया गया है, जिससे यह एक नये रूप में प्रस्तुत हो रहा है।
इस ग्रन्थ के प्रकाशन में हमें अनेक लोगों ने सहयोग दिया है। जिसमें श्री जयन्तीलाल जी दोशी बम्बई द्वारा दस हजार रूपये का सहयोग प्रकाशनार्थ प्राप्त हुआ है। अतः हम उनके आभारी हैं। इसके अलावा इसकी कीमत कम करने में भी जिन लोगों ने सहयोग दिया है, उनके भी हम आभारी हैं। उनकी सूची पृथक से ही अन्यत्र दी जा रही है।
अन्त में, इस पुस्तक के प्रकाशन में संस्था को जिन-जिन लोगों ने प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से सहयोग दिया है, उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं, तथा भविष्य में भी इसी तरह "मुक्ति प्रकाशन" को सहयोग करते रहेंगे, ऐसी आशा और अपेक्षा के साथ
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निदेशक
राजेश चन्द्र जैन
एम. ए.
मुक्ति प्रकाशन, अलीगंज, (एटा) (उ.प्र.) 207247