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________________ जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा 325 समयानुकूल कृति विद्वान लेखक ने श्रमण के समग्र जीवन पर बहुत वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। श्रमणों की ऐतिहासिकता, संघभेद आदि पर अच्छा प्रकाश डाला है। अट्ठाइस मूलगुण, द्रव्यलिंग/भावलिंग आदि पर स्पष्ट विवेचन हुआ है। पुस्तक की भाषा-शैली बहुत सुन्दर है। कुछ स्थलों पर तो बहुत साहस का परिचय दिया। जिसकी आज अत्यधिक आवश्यकता थी। आखिर, कड़वी दवा तो कभी न कभी मरीज को देनी ही पड़ेगी। अतः यह एक समयानुकूल कृति बन गयी है। ब्र. कैलाशचन्द "अचल" शास्त्री, ललितपुर . आज का अति आवश्यक/उपयोगी विषय जैन श्रमण के यथार्थ स्वरूप की विवेचना, अनेक पहलुओं को स्पर्श करते हुए बड़ी शोध-खोज पूर्ण दृष्टि से इस पुस्तक में की गई है। बहुत निर्भीक होकर अथक परिश्रम पूर्वक जो विषय इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है, वह निश्चित ही पठनीय/मननीय है। इसमें डॉ. साहब ने जो ईमानदारी और रुचिपूर्वक जैन समाज को एक अपूर्व विषय व्यवस्थित रूप से दिया है, उसकी वर्तमान में अत्यन्त आवश्यकता एवं उपयोगिता थी, उसके लिए निश्चित ही वे प्रशंसा के योग्य हैं। भविष्य में भी वह इसी प्रकार आत्मकल्याण करते हुए माँ जिनवाणी की सेवा करते रहेंगे - ऐसी मंगल कामना है। ज्ञानधारा ( मासिक) संपादक, मुकेश तन्मय 'शास्त्री' विदिशा प्रामाणिक, श्रमसाध्य, साहित्यिक शोधग्रन्थ श्रमण संस्था के स्वरूप एवं विकास के संबंध में डॉ. योगेशचन्द्र जैन का शोधप्रबंध "जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा" एक प्रामाणिक, साधार, श्रमसाध्य, साहित्यिक एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण शोध-ग्रन्थ है। इसमें न केवल श्रमण संस्कृति किन्तु सम्पूर्ण जैनदर्शन का सार एवं उसका आचरण पक्ष समाहित हो गया है, जो मूलतः भावात्मक है। शोध-प्रबन्ध में श्रमण-स्वरूप का अन्तर-बाह्य पक्ष अपने ऐतिहासिक विकास के तथ्यों को व्यक्त करते हुए साधार वर्णित हुआ है। फिर भी उसके अन्तरंग भावात्मक विशुद्ध निर्मल पक्ष का विस्तृत विवेचन इसकी उपयोगिता को द्विगुणित करता है। इससे श्रमणत्व में वीतरागता के अंशों की विद्यमानता के अन्तरंग पक्ष के साथ ही उसके समष्टिपरक-प्रभाव ध्वनित होते हैं जो वर्तमान में गौण हो गये हैं। समग्ररूप से श्रमशील वियन लेखक का श्रम सार्थक हुआ है जिसके लिये वह बधाई का पात्र है। यह ग्रन्थ जैन साहित्य की श्री वृद्धि तो करेगा ही, निर्मल चित्त के
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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