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________________ जैन श्रमण : स्वरूप और समीक्षा आवश्यकता आ गयी है कि मुनियों के परिग्रह परिमाण की मर्यादा बांधी जाए कि उनके साथ में "कितनी मोटरें, कितनी रसद, आदि सामग्री कितना धन-धान्य," आदि होना चाहिए। आज के युग में शास्त्रोक्त आचार का पालन करने वाला निरारम्भी अपरिग्रही सच्चा साधु नहीं है, जिसके पास जितना अधिक परिग्रह है वह उतना ही बड़ा साधु है । अब साधुओं का काम आत्म-साधना नहीं है, किन्तु धन संग्रह करके मन्दिर - मूर्तियाँ बनवाना है। धनिक लोग ऐसे ही साधुओं को पसन्द करते हैं। काला धन तो काले ही में जाएगा। उसी काले धन का प्रभाव है कि दिगम्बर मुनि मार्ग भ्रष्ट होता जाता है और उसकी ओर से आँख मूंदने वाले सच्चे मुनि भक्त हैं और उसका विरोध करने वाले मुनि विरोधी कहे जाते हैं। यही पंचम काल का प्रभाव है, अतः इस समय आवश्यकता है। समीचीन दिगम्बर मुनि मार्ग की सुरक्षा करने वालों की अन्यथा धन के लोभी इसे बेच खायेंगे। 296 262 प्रसिद्ध विद्वान स्व. पं. श्री चैनसुख दासजी शिथिलाचार के विरोध में कहते हैं कि शिथिलाचारियों के अन्ध भक्त यह अच्छी तरह समझ लें कि शिथिलाचारियों की आलोचनाएँ तब तक बन्द न होंगी, जब तक वे अपने शिथिलाचार में सुधार न कर लें ; भले ही हमें इसके लिए डट कर गालियाँ दी जाएँ । उपगूहन अंग के नाम पर किसी भी शिथिलाचारी की पीठ ठोकने का समर्थन नहीं किया जा सकता है। मुनि भक्ति की डींग मारने वाले और बाह्यमुनि वेष को ही पूजा की चीज समझने वाले सभी मुनियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों नहीं करते। मान्य और अमान्य मुनियों का सकारण उल्लेख क्यों नहीं करते हैं।297 सन् 59 के बाद आज 28 वर्ष पश्चात् भी वही स्थिति है, आज तो भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । आज की स्थिति पर अपनी टिप्पणी करते हुए जैन धर्म के तलस्पर्शी अन्तर्राष्ट्रीय विद्वान डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल कहते हैं कि "शरीर पर तन्तु भी न रखने वाले नग्न दिगम्बरों को जब अनेक संस्थाओं मन्दिरों, मठों, बसों आदि का रुचिपूर्वक सक्रिय संचालन करते हुए देखते हैं तो शर्म से माथा झुक जाता है। जब साक्षात् देखते हैं कि उनकी मर्जी के बिना बस एक कदम भी नहीं चल सकती, तब कैसे समझ में आवे कि इससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं है । 298 ➖➖➖➖➖ इस भ्रष्टता से व्यग्र होकर समाज के नाम एक विज्ञप्ति जारी करते हुए ऐलक सुध्यानसागर जी कहते हैं कि जितनी हमारी जैन संस्थाएँ हैं, उनके पदाधिकारीगण मिलकर आजकल साधु-मार्ग में जो शिथिलाचार की वृद्धि हो रही है, उसको दूर करने का प्रयत्न करें----। उनसे शान्ति से स्पष्ट कहें कि जो-जो आगम विरुद्ध क्रिया उनसे हो रही हैं, जैसे एकाकी रहना, एक स्त्री साध्वी को रखना, चंदा-चिठ्ठा करना, गंडा - ताबीज बेचना, बस (मोटर) वाहन रखना, संस्था बनाके वहीं पर जम जाना, कूलर, फ्रिज, पंखा, वी. सी. आर. टी. वी., टेलीफोन आदि जिनागम से विरुद्ध वस्तुओं का रखना तथा उपयोग करना एवं जवान "
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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