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________________ आहार चर्या 227 प्रमाणभूत आहार कहलाता है। इससे भिन्न जो अधिक आहार ग्रहण करते हैं, उनके प्रमाण या अतिमात्र नाम का आहार दोष होता है। प्रमाण से अधिक आहार लेने पर स्वाध्याय नहीं होता है, षट् आवश्यक क्रियाएं करना भी शक्य नहीं रहता है। ज्वर आदि रोग भी उत्पन्न होकर संतापित करते हैं तथा निद्रा और आलस्य आदि दोष भी होते हैं। अतः प्रमाणभूत आहार लेना चाहिए। (3) अंगार दोष - गृद्धता युक्त आहार लेना अंगार दोष है। अर्थात् जो अत्यन्त आसक्ति पूर्वक आहार ग्रहण करता है, उसके अंगार नामक दोष उत्पन्न होता है। (4) धूम दोष - बहुत निन्दा, क्रोध और द्वेष करते हुए आहार लेना धूम दोष है। अर्थात् यह भोजन विरूपक है, मेरे लिए अनिष्ट है-ऐसी निन्दा करके भोजन करना धूम दोष है, क्योंकि इसके कारण अन्तरंग में क्लेश देखा जाता है। आहार के अन्तराय अन्तराय नाम विघ्न का है। साधुओं की आहार चर्या में भी कदाचित् बाल या चींटी आदि पड़ जाने के कारण जो बाधा आती है उसे आहार अन्तराय कहते हैं। साधु के आहार के अन्तराय के निम्न रूप मिलते हैं। जिनका विवेचन निम्न प्रकार से है:(1) काक - आहारार्थ गमन करते हुए या आहार लेते समय कौआ, वक आदि पक्षी बीट कर दे तो वह काक अन्तराय है। (2) अमेध्य - आहार को जाते समय विष्ठा आदि अपवित्र मल पैर आदि में लग जाना। (3) छर्दि - वमन हो जाना। (4) रुधिर - अपने या अन्य शरीर से रक्तस्राव होता दिखना। (5) रोधन - आहार जाते समय कोई रोक दे। (6) अश्रुपात - दुःख, शोक से अपने या पर के आँसू गिरना। (7) जान्वधः परामर्श - जंघा के नीचे भाग का स्पर्श हो जाना। (8) जानूपरि व्यतिक्रम - घुटनों से ऊपर के अवयवों का स्पर्श हो जाना। (9) नाम्यधो निर्गमन - दाता के घर का दरवाजा छोटा होने पर नाभी से नीचे शिर करके आहारार्थ जाना। (10) प्रत्याख्यात सेवना - जिस वस्तु का त्याग हो उसका भक्षण हो जाना। (11) जंतुवध - कोई जीव सामने ही किसी जीव का वध कर दे। (12) काकादि पिण्डहरण - आहार करते समय हाथ से कौआ आदि के द्वारा आहार का छिन जाना। (13) पाणि - पिण्डपतन-पाणिपात्र से ग्रास मात्र भी गिर जाना। (14) पाणि जन्तुवध - आहार करते समय किसी जन्तु का पणिपुट में स्वयं आकर मर . जाना। (15) मांसादि दर्शन - भोजन करते समय मांस, मद्य आदि दिख जाना।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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