SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाचार का अर्थ 173 3. सम आचार पाँच (महाव्रत) आचारों को आचार कहा है जो कि प्रमत्त, अप्रमत्त, आदि सभी मुनियों में आचार समान रूप होने से सम-आचार है। क्योंकि ये सभी मुनि प्राणिवध आदि के त्याग करने रूप व्रतों से समान हैं, इसीलिए उनका आचार सम-आचार है। अथवा सम-उपशम अर्थात् क्रोधादि कषायों के अभाव रूप परिणाम से रहित जो आचरण है वह समाचार है। "सम" शब्द से दशलक्षण धर्म को भी ग्रहण किया जाता है। अतः इन क्षमादिदशधर्मों : सहित जो आचार है वह समाचार है, अथवा आहार ग्रहण और देववन्दना आदि क्रियाओं में सभी साधुओं को सह अर्थात् साथ ही मिलकर आचरण करना समाचार 4. समान आचार मान (परिणाम) के सह ( साथ ) जो रहता है वह समान है। यहाँ "सह" को "स" आदेश व्याकरण के नियम से करके सह मान समान बना है। अथवा समान मान को समान कहते हैं। अतः समान ( बराबर) आचार "समान" है। यहाँ सभी का समान रूप से "मान" अर्थात् पूज्य या इष्ट जो आचार है वह समाचार है। मूलाचार की इस गाथा में: समदा समाचारो साचारो समो व आचारो। सव्वेसिं सम्माणं समाचारो दु आचारो।। 123 ।। इसमें पाँच प्रकार से समाचार निर्देश मिलता है-समता समरसी भाव, समयाचार स्वसमय अर्थात् स्वरूप में आचरण या जिनागमोक्त व्यवस्था के अनुरूप आचार, सम्यक् आचार-समीचीन आचार, सम आचार सभी साधुओं का साथ-साथ आचरण या क्रियाओं का करना, सव्वेसिं अर्थात् सभी क्षेत्रों में समान आचार होना अर्थात् हानि-वृद्धि रहित सभी क्षेत्र-काल में समान रूप से आचरण रहना समाचार है। - इस "समाचार को" औधिक और "पदविभागिक" के भेद रूप दो प्रकार से विभक्त किया है। औधिक समाचार दश प्रकार का है और पद विभागिक समाचार अनेक प्रकार का है। औधिक समाचार के दस भेद निम्न हैं। इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आसिका, निषेधिका, आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छन्दन, सनिमन्त्रण और उपसंपत्।
SR No.032455
Book TitleJain Shraman Swarup Aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogeshchandra Jain
PublisherMukti Prakashan
Publication Year1990
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy