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९८. नाऽऽलस्सेण समं सुक्खं, न विज्जा सह निद्दया ।
न वेरग्गं ममत्तेणं, नारंभेण दयालुया ।।७।।
आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु विद्याभ्यासी नहीं हो सकता, ममत्व रखने वाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता ।
૯૮. આળસુ સુખી થઈ શકતો નથી, ઊંઘણશી વિધાભ્યાસ થઈ
શકતો નથી, મમતા રાખનાર વૈરાગી થઈ શકતો નથી અને હિંસક દયાવાન થઈ શકતો નથી.
98. A lazy person cannot be happy. One who is
addict to sleep cannot study. A person with attachment cannot renounce wordly pleasure and a violent person cannot become compassionate.
९९. जागरह नरा ! णिच्चं, जागरमाणस्स वड्डते बुद्धी ।
जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो ॥८॥
अतः मनुष्यों ! सतत जागृत रहो । जो जागता है उसकी बुद्धि बढ़ती है । जो सोता है वह धन्य नहीं है; धन्य वह है, जो
सदा जागता है । (GLORY OF DETACHMENT PAROOOOOOOOOE५५)