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८९. से जाणमजाणं वा, कट्टुं आहम्मिअं पयं ।
संवरे खिप्पमप्पाणं, बीय तं न समायरे ।।१४।।
जान या अनजान में कोई अधर्म कार्य हो जाय तो अपनी आत्मा को उससे तुरन्त हटा लेना चाहिए, फिर दूसरी बार वह कार्य न किया जाये ।
૮૯. જાણતાં કે અજાણતાં કોઈ અધર્મ કામ થઈ જાય તો પોતાના આત્માને એવાથી તરત દૂર કરી ફરીથી એવું કાર્ય ન કરવું
गे.
89. If any unreligious act is committed knowingly
or unknowingly, we should disassociate our soul immediately from such act and with firm determination should avoid repeating the same. (such sinful act).
९०. धम्माराम चरे भिक्खू, धिइमं धम्मसारही ।
धम्मारामरए दंते, बंभचेर-समाहिए ॥१५॥
धैर्यवान, धर्म के रथ को चलाने वाला, धर्म के आराम में रत, दान्त और ब्रह्मचर्य में चित्त का समाधान पाने वाला भिक्षु
धर्म के आराम में विचरण करे । (LOOOOOOOOOOOOOOOOOOce वीतराग येलप)