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२६९. भावेज्ज अवत्थतियं, पिंडत्थ-पयत्थ-रूवरहियत्तं ।
छउमत्थ-केवलित्तं, सिद्धत्तं चेव तस्सत्थो ।।१६॥ ध्यान करने वाला साधक पिंडस्थ, पदस्थ और रूपातीतइन तीनों अवस्थाओं की भावना करे । पिंडस्थ ध्यान का विषय है – छद्मस्थत्व - अर्थात् देह-विपश्यना । पदस्थध्यान का विषय है केवलित्व अर्थात् कैवल्य-स्वरूप का अनुचिंतन और रूपातीतध्यान का विषय है सिद्धत्व अर्थात् शुद्ध आत्मा ।
२७८.
ધ્યાત કરી રહેલ સાધક પિંડસ્થ, પદસ્થ અને રૂપાતીતએમ ત્રણેય અવસ્થાની ભાવના કરે. પિંડસ્થ ધ્યાનનો વિષય છે - છદ્મસ્થ અર્થાત્ દેહવિપશ્યતા, પદસ્થ ધ્યાનનો વિષય છે કેવલિત્વ અર્થાત્ કૈવલ્ય સ્વરૂપનું અનુચિંતન અને રૂપાતીત ધ્યાનનો વિષય છે સિદ્ધત્વ અર્થાત્ શુદ્ધ આત્મા.
269. An ascetic meditating ponders about all the
three concepts VIZ physical, formal and formless state. The subject matter of physical meditation is body consciousness or 'Chhadmasthatva' subject matter of padastha meditation is omniscience, means pondering on the nature of omniscient and subject matter of formless meditation is 'Siddhatva' (state of siddha) or a purified soul.
२७०. अवि झाइ से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं ।
उड्डमहे तिरियं च, पेहमाणे समाहिमपडिण्णे ॥१७॥
महावीर उक' आदि आसनों में स्थित और स्थिर होकर ध्यान करते थे । वे ऊँचे-नीचे और तिरछे लोक में होने वाले पदार्थों को ध्येय बनाते थे । उनकी दृष्टि आत्म-समाधि पर टिकी हुई थी । वे संकल्प-मुक्त थे ।
GLORY OF DETACHMENT N
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