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Translation preserving Jain terms: The woman says, "Bring the Asandiya (a small couch or seat) made of the new Sutra (thread), and the Padullain (sandals) for walking around. Then, for the sake of the Putradohala (special desire for a child), the men become like slaves, obeying her commands." Commentary: The 'Asandiya' refers to a small couch or seat made of new, fresh thread, indicating its purity and newness. The 'Padullain' are sandals or footwear for walking around. The woman, being in the state of Putradohala (special craving or desire for a child during pregnancy), commands the men like slaves, making them obey her wishes to fulfill her cravings. The verse highlights how the pregnant woman exercises authority over the men, just as masters command their slaves, in order to satisfy her special desires during pregnancy.
Page Text
________________ स्त्री परिज्ञाध्ययनं आसंदियं च नवसुत्तं, पाउल्लाइं संकमट्ठाए । अदू पुत्तदोहलट्ठाए आणप्पा हबंति दासा वा ॥१५॥ छाया - आसिन्द काञ्च नवसूत्रां पादुकाः संक्रमणाय । अथ पुत्रदोहनार्थाय, आज्ञप्ताः भवन्ति दासाइव ॥ अनुवाद - नए सूत से बनी हुई एक आसन्दीका-खरीया लाओ । इधर उधर घूमने हेतु पैरों में पहनने हेतु पादुका-खड़ाऊ लाओ ! मैं गर्भवती हूँ मुझे दोहद विशेषइच्छा उत्पन्न हुई है । अतः मेरे लिए अमुक वस्तु लाओ । औरतें इस तरह नौकर की ज्यों पुरुष पर हुक्म चलाती हैं । टीका - तथा 'आसंदिय' मित्यादि, आसन्दिकामुपवेशनयोग्यां मञ्चिकां तामेव विशिनष्टि नवंप्रत्यग्रं सूत्रं वल्कवलितं यस्यां सा नवसूत्राताम् उपलक्षणार्थत्वाद्वध्रचर्माववद्धा वा निरूपयेति वा एवं च-मौजे काष्ठपादुके दातुंसमर्थेति, अथवा-पुत्रे गर्भस्थे दौहदःपुत्रदौहृदः-अन्तर्वर्ती फलादावभिलाषविशेषस्तस्मै-तत्सम्पादन्यर्थं स्त्रीणां पुरुषा:स्ववशीकृता दासा इव'क्रयक्रीता इव आज्ञाप्या' आज्ञापनीया भवन्ति, यथा दासा अलज्जितैर्योग्यत्वादाज्ञाप्यन्ते एवं तेऽपि वराकाः स्नेह पाशावपाशिता विषयार्थिनः स्त्रीभिः संसारावतरणवीथीभिरादिश्यन्त इति ॥१५॥ अन्यच्च टीकार्थ - बैठने हेतु एक छोटी खाट या माँचा लाओ । उसकी विशेषता बतलाते हुए कहते हैं कि वह नए सूत से बनी हो । यहाँ सूत की खटिया सांकेतिक है । उससे चमड़े की बाद से बनी हुई खटिया भी ग्रहित है । इधर उधर घूमने के लिए मूंज से बनी हुई या काठ से बनी हुई पादुका खड़ाऊ आदि मेरे लिये लाओ। क्योंकि मैं नंगे पैर जमीन पर एक कदम भी नहीं चल सकती । बच्चा गर्भ में होने पर औरत को फल आदि खाने की जो इच्छा पैदा होती है उसे दोहद कहा जाता है। उसे पूर्ण करने के लिए औरतें पुरुषों को खरीदे हुये नौकरों की ज्यों हुक्म देती हैं । जैसे लोग बेशर्म होकर नौकरों पर हुक्म चलाते हैं उसी तरह स्नेह के बंधन में बंधे हुए भोग लोलूप पुरुषों पर स्त्रियाँ आज्ञायें चलाती हैं जो संसार के परिभ्रमण का मार्ग है। जाए फले समुप्पन्ने, गेण्हसु वा णं अहवा जहाहि । अहं पुत्त पोसिणो एगे, भारवहा हंवति उट्टा वा ॥१६॥ छाया - जाते फले समुत्पन्ने, गृहाणैन मथवा जहाहि । अथ पुत्र पोषिण एके भरवाहाः भवन्ति उष्ट्रा इव ॥ अनुवाद - पुत्र जन्म गृहस्थ का फल है । उसके उत्पन्न होने पर गर्वोद्धत स्त्री पुरुष को, पति को कहती है इस बच्चे को गोदी में ले लो या छोड़ दो । कई पुत्र के पालन-पोषण में आसक्त पुरुष पुत्र को ऊंट की तरह अपनी पीठ पर बैठाकर चलते हैं । टीका - जात:-पुत्रः स एव फलं गृहस्थानां, तथाहि-पुरुषाणां कामभोगाः फलं तेषामपि फलंप्रधानकार्य पुत्रजन्मेति, तदुक्तम् - "इदं तत्स्नेहसर्वस्वं, सम माढयदरिद्रयोः । अचन्दनमनौशीरं, हृदयस्यानुलेपनम् ॥१॥ यतच्छपनिकेत्युक्तं, बालेनाव्यक्तभाषिणा । हित्वा सांख्यं च योगं च, तन्मे मनसि वर्तते ॥२॥" 299)
SR No.032440
Book TitleSutrakritang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Acharya, Priyadarshan Muni, Chhaganlal Shastri
PublisherShwetambar Sthanakvasi Jain Swadhyayi Sangh
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size21 MB
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