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संक्रमकरण ]
हास्यषट्क का जघन्य स्थितिसंक्रम संख्यात वर्ष का है तथा संक्रमण काल में जो संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति है वही अन्तर्मुहूर्त अधिक यत्स्थिति है अर्थात् सर्वस्थिति है। जिसका स्पष्टीकरण यह है -
अन्तरकरण में वर्तमान जीव उस संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति का संज्वलन क्रोध में संक्रमण करता है। अन्तरकरण के समय उस कर्मदलिक का वेदन नहीं करता है, किन्तु उससे ऊपर करता है। इसलिये अन्तरकरण के काल से अधिक संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति हास्यषट्क की जघन्य स्थितिसंक्रम काल में यत्स्थिति प्राप्त होती है।
जहन्नबंधो इत्यादि अर्थात पुरुषवेद और संज्वलन कषायों का जो जघन्य स्थितिबंध पहले कहा है, यथा पुरुषवेद का आठ वर्ष, संज्वलन क्रोध का दो माह, संज्वलन मान का एक मास और संज्वलन माया का अर्धमास, वही जघन्य स्थितिबंध अबाधा काल से हीन उन प्रकृतियों का जघन्य स्थितिसंक्रम है। अबाधा काल से रहित स्थिति ही अन्यत्र संक्रांत होती है, क्योंकि उसमें ही कर्मदलिक पाये जाते हैं, अबाधाकाल से हीन कर्मस्थिति कर्मनिषेक होता है, ऐसा सिद्धान्त वचन है। जघन्य स्थिति बंध में अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है और जघन्य स्थिति के संक्रमणकाल में अबाधाकाल के भीतर पूर्वबद्ध कर्म की सत्ता नहीं पाई जाती है, क्योंकि उस समय उस सभी का क्षय हो जाता है। इसलिये इन पुरुषवेद आदि का अन्तर्मुहूर्तहीन जो अपना-अपना जघन्य स्थितिबंध है वही जघन्य स्थितिसंक्रम है और इस समय इन कर्मों की जो यत्स्थिति है - सर्वस्थिति है, वह अपने-अपने अबाधारूप अन्तर्मुहूर्त प्रमाण से युक्त है अर्थात् अबाधाकाल सहित जघन्य स्थितिबंध है। इसलिये उसे फिर दो आवलिकाल से हीन जानना चाहिये।
इसका अभिप्राय यह है कि जघन्य स्थितिसंक्रम में अबाधा काल प्रक्षिप्त किया जाता है और इस प्रक्षेप के अनन्तर दो आवलि प्रमाण काल से निकाला जाता है, उसके निकालने पर जितनी स्थिति शेष रहती है, उतनी जघन्य स्थिति संक्रमकाल में सर्वस्थिति है। ..
प्रश्न – दो आवलि प्रमाण काल क्यों निकाला जाता है ?
उत्तर – उक्त प्रकृतियों के बंधविच्छेद के पश्चात् बंधावलिका के व्यतीत हो जाने पर चरम समय में बंधी हुई पुरुषवेद आदि प्रकृतियों की प्रदेशलता संक्रमण के लिये प्रारम्भ की जाती है और एक आवलिका प्रमाण काल से वह लता संक्रांत होती है। संक्रमावलिका के चरम समय में जघन्य स्थितिसंक्रम प्राप्त होता है। इसलिये बंधावलिका और संक्रमावलिका रहित ही अबाधा सहित जघन्य स्थितिबंध जघन्य स्थिति के संक्रम काल में यत्स्थिति-सर्वस्थिति रूप होता है।
अब जिन कर्मों की सत्ता केवली के पाई जाती है, उनकी जघन्य स्थिति के संक्रमण का निरूपण करते हैं -