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________________ संक्रमकरण ] [ ६१ सर्वस्थिति है, उसे यत्स्थिति जानना चाहिये। केवल 'बंधुक्कोसाणं आवलिगूणा ठिई जलिइ' इस वचन के अनुसार वह बंधावलिका से हीन जानना चाहिये। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - आयुबंध के प्रवर्तमान होने के प्रथम समय में जो बांधा गया दलिक है, वह बंधावलि के व्यतीत हो जाने पर ही उद्वर्तित होता है। इसलिये उदवर्तना रूप संक्रम में बंधावलि से हीन अबाधा सहित यत्स्थिति प्राप्त होती है। अथवा निर्व्याघातभाविनी अपवर्तना' भी आयुकर्म की बंधावलिका के बीत जाने पर सर्वदा' ही प्रवर्तित होती है। इसलिये उसकी अपेक्षा ऊपर कही गई यत्स्थिति जानना चाहिये। जघन्य स्थितिसंक्रम इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति का परिमाण का विचार किया गया। अब जघन्य स्थितिसंक्रम के परिमाण के प्रतिपादन का अवसर प्राप्त है। जघन्य स्थितिसंक्रम दो प्रकार का है – १. स्वप्रकृति और २. परप्रकृति। इनमें से पहले स्वप्रकृति में जघन्य स्थितिसंक्रम का कथन करते हैं - आवरण विग्घदसण - चउक्कलोभंतवेयगाऊणं। एगा ठिई जहन्नो, जट्ठिई समयाहिगावलिगा॥३२॥ निदादुगस्स एक्का, आवलिगदुगं असंखभागो य। जट्ठिइ हासच्छक्के, संखिजाओ समाओ य॥३३॥ सोणमुहुत्ता जट्ठिइ, जहन्नबंधो उ पुरिससंजलणे। जट्ठिइ सगऊणजुत्तो, आवलीगदुगूणओ तत्तो॥ ३४॥ शब्दार्थ - आवरणविग्ध – ज्ञानावरण और अन्तराय, दंसधचउक्क - दर्शनावरणचतुष्क, लोभंत - अंतिम (संज्वलन) लोभ, वेयगाऊणं – वेदक सम्यक्त्व और आयुचतुष्क, एगाठिई - एक समय प्रमाण स्थिति, जहन्नो – जघन्य स्थितिसंक्रम, जट्ठिई - यत्स्थिति, समयाहिगावलिगा - एक समयाधिक आवलिका प्रमाण। निद्दादुगस्स – निद्राद्विक का, एक्का – एक समय प्रमाण, आवलिगदुर्ग – दो आवलि प्रमाण, असंखभागो - असंख्यातवें भागाधिक, य - और, जट्ठिइ – यत्स्थिति, हासच्छक्के – हास्य षट्क में, संखिज्जाओ – संख्याता, समाओ - समय (वर्ष), य - और। सोणमुहत्ता – अन्तर्मुहूर्तकाल सहित (अधिक), जट्ठिइ – यत्स्थिति, जहन्नबंधो – जघन्य १. स्थितिघात विहीन अपवर्तना को निर्व्याघातभाविनी अपवर्तना कहते हैं। २. सर्वदा अर्थात् बंधकाल और जघन्य काल दोनों में।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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