SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४ ] [कर्मप्रकृति इत्थीए संजमभवे, सव्वनिरुद्धम्मि गंतुं मिच्छत्तं। देवीए लहुमिच्छी जेट्ठठिइ आलिगं गंतुं ॥ २७॥ शब्दार्थ – इत्थीए – स्त्रीवेद का, संजमभवे – संयम भव में, सव्वनिरुद्धम्मि – सर्व निरुद्ध काल के, गंतुं – जाकर, मिच्छत्तं - मिथ्यात्व में, देवीए – देवी रूप में, लहु – लघुकाल, मिच्छी – मिथ्यात्व द्वारा, जेट्ठठिइ – उत्कृष्ट स्थिति, आलिगं - आवलिका के, गंतुं – बीतने पर (अंत में)। ___ गाथार्थ – संयमभव में सर्व निरुद्ध काल अर्थात् अन्तर्मुहूर्त के शेष रहने पर मिथ्यात्व में जाकर काल करके देवी रूप में उत्पन्न होकर लघु (शीघ्र) पर्याप्त होकर मिथ्यात्व के द्वारा उत्कृष्ट स्थिति बांधकर आवलिका के अंत में स्त्रीवेद का जघन्य प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ - संयमभव से उपलक्षित (संयुक्त) भव अर्थात् संयमभव में सर्व निरुद्ध अर्थात् अन्तर्मुहूर्तकाल के शेष रह जाने पर मिथ्यात्व को प्राप्त हुई स्त्रीवेद के और तत्पश्चात् अनन्तर भव में देवी होकर शीघ्र ही पर्याप्त हुई देवी के उत्कृष्ट स्थितिबंध के अनन्तर आवलिका काल के बीतने पर आवलिका के चरम समय में शीघ्र स्त्रीवेद का जघन्य प्रदेशोदय होता है। इसका भावार्थ यह है कि कोई क्षपितकांशिक स्त्री देशोनपूर्व कोटि वर्ष तक संयम को पालन कर आयु के अन्तर्मुहूर्त शेष रह जाने पर मिथ्यात्व में जाकर और मरकर अनन्तर भव में देवी रूप से उत्पन्न होकर शीघ्र ही पर्याप्त हुई तब उत्कृष्ट संक्लेश में वर्तमान होकर वह स्त्रीवेद की उत्कृष्ट स्थिति को बांधती है और पूर्वबद्ध स्थिति की उद्वर्तना करती है तब उत्कृष्ट बंध के आरम्भ से परे आवलिका के चरम समय में स्त्रीवेद का जघन्य प्रदेशोदय होता है। तथा - अप्पद्धाजोगचिया - णाऊणुक्कस्सगठिईणंते। उवरि थोवनिसेगे, चिरतिव्वासायवेईणं॥ २८॥ शब्दार्थ - अप्पद्धाजोगचियाण - अल्प बंधकाल और अल्प योग द्वारा, आऊण - आयु प्रकृतियों के, उक्कस्सगठिईणते – उत्कृष्ट स्थिति के अंत में, उवरि – ऊपर के समय में, थोवनिसेगे - अल्प निषेक करने पर, चिर - चिरकाल (दीर्घकाल), तिव्वासायवेईणं – तीव्र असाता का वेदन करने वालों के। गाथार्थ – अल्प बंधकाल और अल्प योग के द्वारा बंधी हुई आयु प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थिति के अंत में ऊपर के समय में सबसे अल्पनिषेक करने पर (दीर्घकाल तक), चिरकाल तक तीव्र असाता का वेदन करने वालों के उस उस आयु का जघन्य प्रदेशोदय होता है।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy