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________________ उदयप्रकरण ] [ ३३७ अद्धाजोगुक्कोसो, बंधित्ता भोगभूमिगेसु लहुँ। सव्वप्पजीवियं वज-इत्तु ओवट्टिया दोण्हं ॥१६॥ शब्दार्थ – अद्धाजोगुक्कोसो – उत्कृष्ट अद्धा और योग में, बंधित्ता - बाँध कर, भोगभूमिगेसु - भोगभूमिक जीवों सम्बन्धी, लहुं – शीघ्र, सव्वप्यजीवियं - सबसे अल्प जीवन को, वज्जइत्तु – छोड़कर, ओवट्टिया – अपवर्तना के बाद, दोण्हं – दोनों की। गाथार्थ – उत्कृष्ट अद्धा और उत्कृष्ट योग में भोगभूमिक मनुष्य तिर्यंच संबंधी आयु को बांधकर और शीघ्र मरण कर सर्वाल्प जीवन को छोड़कर दोनों आयुयों की अपवर्तना के बाद प्रथम समय में उन दोनों के उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ – उत्कृष्ट बंधकाल और उत्कृष्ट योग में वर्तमान कोई जीव भोगभूमिज तिर्यंचों में तिर्यंचायु की और कोई मनुष्यों में मनुष्यायु की उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति बांध कर और लघुकाल में (शीघ्र) मरण कर कोई तीन पल्योपम की आयु वाले तिर्यंचों में और कोई तीन पल्योपम की आयु वाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहां पर सबसे कम जीवन अर्थात् अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति को छोड़ कर यानी एक अन्तर्मुहूर्त जीवन धारण कर वे दोनों ही अपवर्तनाकरण से अपनी अपनी शेष समस्त आयु को अपवर्तित करते हैं । तब अपवर्तना के अनन्तर प्रथम समय में उन दोनों – तिर्यंच और मनुष्यों के यथाक्रम से तिर्यंचायु और मनुष्यायु का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है तथा – दूभगणाएजाजस - गइदुगअणुपुस्वितिग सनीयाणं। दंसणमोहक्खवाणे, देसविरइ विरइ गुणसेढी॥ १७॥ शब्दार्थ - दूभगणाएज्जाजस - दुर्भग, अनादेय और अयशःकीर्ति का, गइदुगअणुपुन्वितिग- गतिद्विक आनु पूर्वी त्रिक स - सहित, नीयाणं - नीचगोत्र, दसणमोहक्खवाणे- दर्शनमोहक्षपण की, देसविरइ – देशविरति की, विरइ – सर्वविरति की, गुणंसेढी – गुणश्रेणी। गाथार्थ – दर्शनमोहक्षपण की, देशविरति की और सर्वविरति की गुणश्रेणी के शीर्ष पर वर्तमान जीव के नीचगोत्र सहित दुर्भग, अनादेय, अयश:कीर्ति और गतिद्विक सहित आनुपूर्वीत्रिक का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है। विशेषार्थ – कोई अविरतसम्यग्दृष्टि मनुष्य दर्शनमोहनीय की तीनों प्रकृतियों का क्षपण करने के लिये उद्यत होता हुआ गुणश्रेणी करता है, तत्पश्चात वही देशविरति को प्राप्त हुआ तब सर्व विरति निमित्तक गुणश्रेणी करता है, तत्पश्चात् वही सर्वविरति को प्राप्त हुआ तब सर्वविरति निमित्तक
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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