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________________ [ ३३१ उदयप्रकरण ] यदि इनके काल का विचार किया जाये तो 'तव्विवरीओकालो संखेज्जगुणसेढी' अर्थात् इन सभी गुणश्रेणियों में काल उससे विपरीत अर्थात् प्रदेशोदय से विपरीत संख्यात गुणितश्रेणी से होता है, अयोगिकेवली की गुणश्रेणी का काल सबसे अल्प है उससे सयोगिकेवली की गुणश्रेणी का काल संख्यात गुण है। उससे भी क्षीणमोह गुणश्रेणी का काल संख्यात गुणा है । इस प्रकार उत्तरोत्तर सम्यक्त्वोत्पाद गुणश्रेणी तक काल संख्यात गुणा अधिक कहना चाहिये । यथा प्रदेशोदय और काल की अपेक्षा इन गुणश्रेणियों की स्थापना का प्रारूप इस प्रकार समझना - चाहिये ११ १० ९ ६ ५ ४ ३ २ — १ प्रदेशोदयापेक्षा अयोगि केवली में सयोगि केवली में क्षीण मोह में मोहनीय क्षपण में ११ १० ९ ८ उपशांत में चारित्रमोह. की क्षपणाओं में ६ दर्शनमोहत्रिक की क्षपणा में ५ संयोजना कषायों की विसंयोजना में४ सर्वविरत में ३ देशविरत में असंख्यात गुणित २ १ सम्यक्त्व की उत्पति में प्रदेशोदय सबसे कम कालापेक्षा सबसे अल्प पूर्व से संख्यातगुणा अधिक 11 11 11 17 11 11 11 11 11 गुणश्रेणियों की प्रदेशोदय और काल की अपेक्षा उक्त स्थापना प्रारूप में यह स्पष्ट हो जाता है कि पहली दूसरी तीसरी आदि में नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः प्रदेशोदय असंख्यात गुणित अधिक है, काल की अपेक्षा ग्यारहवीं, दसवीं आदि में ऊपर से नीचे की ओर क्रमशः काल संख्यातगुण अधिक है । सारांश यह है कि सम्यक्त्व उत्पाद की गुणश्रेणी से आगे की गुणश्रेणियां पहली के बाद
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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