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________________ उपशमनाकरण ] [ ३११ भव में, दुक्खुत्तो – दो बार, चरित्तमोहं – चारित्रमोह को, उवसमेइ – उपशमाता है। गाथार्थ – उपशमश्रेणी पर आरोहण करते समय जहां जहां जो करण विच्छिन्न हुए थे, वे वे गिरते समय वहां वहां प्रगट हो जाते हैं । उदय और स्थितिबंधादिक श्रेणी के समान ही होते हैं। एक भव में जीव दो बार चारित्रमोह को उपशमाता है। विशेषार्थ – उपशमश्रेणी पर आरोहण करते हुए जहां जिस जिस स्थान पर बंधनकरण, संक्रमकरण आदि में से जिन जिन को विच्छिन्न किया था, उपशमश्रेणी के गिरते हुये और उस उस स्थान को प्राप्त करते हुये वे वे करण उदघाटित हो जाते हैं । अर्थात् उन करणों का वहां कार्य प्रारम्भ हो जाता है तथा उदय, स्थितिबंध आदिक इतर तुल्य अर्थात् उपशमश्रेणी आरोहण करते समय होने वाले उदय और स्थिति आदि के समान होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि उपशमश्रेणी पर आरोहण करते हुये जो कर्म उदय और स्थिति आदि से विच्छिन्न हुए थे उस उस के उदय, स्थिति आदिक प्रतिपात के समय वहां वहां होने लगते हैं। 'एगभवे' इत्यादि अर्थात् जीव एक भव में दो बार चारित्रमोह की उपशमना करता है। यानि दो बार उपशमश्रेणी पर चढ सकता है, किन्तु उसी भव में तीसरी बार नहीं चढ़ सकता है । इस प्रकार पुरुषवेद के उदय से उपशमश्रेणी पर चढ़ने वाले जीव की विधि बतलाई। अब स्त्रीवेद एवं नपुंसकवेद के उदय से उपशमश्रेणी को प्राप्त होने वाले जीव की विधि कहते हैं - उदयं वजी इत्थी, इत्थिं समयइ अवेयगा सत्त। तह वरिसवरो वरि-सवरि इत्थिं समगं कमारद्धे॥६५॥ शब्दार्थ – उदयं – उदय समय को, वज्जी – छोड़कर, इत्थी – स्त्री, इत्थिं - स्त्रीवेद को, समयइ – उपशमाती है, अवेयगा - अवेदक होकर, सत्त – सात, तह – इसी तरह, वरिसवरो – नपुंसक, वरिसवरि – नपुंसकवेद को, इत्थिं – स्त्रीवेद, समगं – साथ, कमारद्धे - क्रम से आरम्भ करने के समय। गाथार्थ - (अंतिम) उदय समय मात्र स्थिति को छोड़कर स्त्रीवेद को उपशमाती स्त्री अवेदक होती हुई, उसी समय सात नोकषायों को उपशमाती है और इसी क्रम से उपशमश्रेणी को आरम्भ करने के समय नपुंसक जीव नपुंसकवेद को स्त्रीवेद के साथ उपशमाता है। १. जो जीव दो बार उसी भव में उपशमश्रेणी पर आरोहण कर लेता है। वह जीव उसी भव में क्षपकश्रेणी पर आरोहण नहीं करता। किन्तु जो जीव एक बार उपशमश्रेणी पर आरोहण करता है। वह उसी भव में क्षपकश्रेणी पर भी आरोहण कर सकता है। यह कर्म सिद्धान्त का अभिप्राय है। आगमिक दृष्टिकोण से तो जीव एक भव में एक ही श्रेणी पर आरोहण करता है। उपशम श्रेणी या क्षपकश्रेणी "अन्नयर सेढिवज्जं एग भवेणं च सव्वाइं"।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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