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________________ ३१० ] [ कर्मप्रकृति गाथार्थ - प्रमत्तगुणस्थान में आने के बाद प्रमत्त और इतर अप्रमत्त गुणस्थान में अनेकों सहस्र परावर्तन करके नीचे के अनन्तरवर्ती दो गुणस्थानों को अथवा सास्वादन गुणस्थान को भी जा सकता है। विशेषार्थ – प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानों में बहुत से हजारों परिवर्तन करके अर्थात् छठे से सातवें और सातवें से छठे गुणस्थान में हजारों बार जाने आने के बाद कोई जीव उससे अधोवर्ती अनन्तर गुणस्थान द्विक को प्राप्त होता है। अर्थात् कोई देशविरत भी हो जाता है और कोई अविरत सम्यग्दृष्टि भी हो जाता है और जिन आचार्यों के मत से अनन्तानुबंधी कषायों की उपशमना होती है, उनके मतानुसार कोई जीव सास्वादन भाव को भी प्राप्त होता है। तथा - उवसमसम्मत्तद्धा, अंतो आउक्खया धवं देवो। तिसु आउगेसु बढेसु जेण सेढिं न आरुहइ॥६३॥ शब्दार्थ – उवसमसम्मत्तद्धाअंतो – उपशम सम्यक्त्व के काल में रहते, आउक्खया - आयु के क्षय होने पर, धुवं – निश्चित रूप से, देवो – देव, तिसु - तीन, आउगेसु - आयुकर्मों के, बद्धेसु - बंधने पर, जेण - जिस कारण से, सेढिं - श्रेणी का, न – नहीं, आरुहइ - आरोहण करता है। गाथार्थ – उपशम सम्यक्त्व के काल में रहते जीव का यदि आयुक्षय से मरण होता है तो निश्चित रूप से देव होता है। क्योंकि शेष तीन आयुकर्मों के बंधने पर जीव श्रेणी पर आरोहण नहीं करता है। विशेषार्थ - औपशमिक सम्यक्त्व के काल में वर्तमान कोई जीव यदि आयु क्षय के कारण काल करता है, तो वह अवश्य ही देव होता है, और यदि वह सास्वादन भाव को भी प्राप्त होता हुआ काल करता है तो वह भी देव ही होता है। क्योंकि ऐसा कहा गया है – जिस कारण से देवायु को छोड़ कर शेष तीनों आयुकर्मों में से किसी एक आयु के बंध हो जाने पर जीव उपशमश्रेणी पर आरोहण नहीं करता है। इसलिये श्रेणी पर चढ़ा हुआ जीव श्रेणी से गिरकर काल करके देव ही होता है तथा उग्घाडियाणि करणाणि, उदयट्ठिइमाइगं इयरतुल्लं। एगभवे दुक्खुत्तो, चरित्तमोहं उवसमेइ॥६४॥ शब्दार्थ – उग्घाडियाणि.- उद्घटित, प्रकट हो जाते हैं, करणाणि – करण, उदय द्विइमाइगं - उदयस्थिति बंधाद्विक, इयरतुल्लं - इतर (श्रेणी आरोहण) के समान, एगभवे – एक
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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