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________________ ३०८ ] [ कर्मप्रकृति अर्थबोधक है । अत: उसका यह अर्थ हुआ कि यहां सिर्फ आनुपूर्वी से ही संक्रम नहीं होता है किन्तु अनानुपूर्वी संक्रम भी होता है तथा बंध के अनन्तर छह आवलिकाओं से ऊपर उदीरणा होती है, ऐसा जो पहले कहा था, वह नहीं होता है किन्तु बंधावलिका मात्र काल के बीतने पर भी उदीरणा होती है तथा वेइज्जमाण संजलण-द्धाए अहिगा उ मोहगुणसेढी । तुल्ला य जयारूढो, अतो य सेसेहि से तुल्ला ॥ ६० ॥ — शब्दार्थ वेइज्माण अधिक, उ तथा, मोहगुणसेढी – मोहनीय प्रकृति की गुणश्रेणी, तुल्ला जयारूढो - जिससे आरूढ हुआ, अतो य वहां से, सेसेहि - शेष कर्मों से, से - - - वेद्यमान, संजलणद्धाए – संज्वलन काल से, अहिगा य - और, समान, — — समान तुल्य । गाथार्थ मोहनीय प्रकृतियों की गुणश्रेणी वेद्यमान संज्वलन काल से अधिक होती है तथा जिस संज्वलन कषाय के उदय से श्रेणी पर आरूढ हुआ, वहां से गुणश्रेणी शेष कर्मों की गुणश्रेणी के समान आरम्भ करता है । - विशेषार्थ मोहनीय कर्म की प्रकृतियों की गुणश्रेणी काल की अपेक्षा वेद्यमान संज्वलन ATM से अधिक गिरते हुये आरम्भ करता है, किन्तु आरोहण काल की गुणश्रेणी की अपेक्षा वह समान है, तथा गाथा में आगत 'जयारूढो ' पद का यह अर्थ है कि संज्वलन कषाय के उदय से उपशम श्रेणी को प्राप्त हुआ था, उसके उदय को प्राप्त होता हुआ, उससे लगाकर आगे की उसकी गुणश्रेणी को शेष कर्मों की गुणश्रेणी के साथ समान आरम्भ करता है । जैसे कोई जीव संज्वलन क्रोध के उदय से श्रेणी को प्राप्त हुआ, तब श्रेणी से गिरता हुआ वह संज्वलन क्रोध के उदय को प्राप्त होता है, वहां आगे उसकी गुणश्रेणी शेष कर्मों के समान होती है। इसी प्रकार मान और माया की गुणश्रेणी का भी कथन करना चाहिये तथा संज्वलन लोभ से उपशमश्रेणी को प्राप्त जीव के प्रतिपात काल में प्रथम समय से ही लेकर संज्वलन लोभ की गुणश्रेणी शेष कर्मों की गुणश्रेणी के साथ एक समान होती है और शेष कर्मों का उपशमश्रेणी को आरोहण करते हुए जहां जो बंध, संक्रम आदि प्रवृत्त था, वह उसी प्रकार से प्रतिपतित जीव के भी पश्चानुपूर्वी के क्रम से हीन और अधिकता से रहित जैसा को तैसा अन्यूनातिरिक्त जानना चाहिये तथा वह, तुल्ला खवगुवसामगपडि - वयमाणदुगुणो तहिं तहिं बंधो। अणुभागो णंतगुणो, असुभाण सुभाण विवरीओ ॥ ६१ ॥
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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