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________________ [ ३०३ उपशमनाकरण ] विशेषार्थ इस किट्टिकरणाद्धा के संख्यात भागों के व्यतीत होने पर संज्वलन लोभ का स्थितिबंध भिन्नमुहूर्त अर्थात् अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है और तीन घति कर्मों का स्थितिबंध दिवसपृथक्त्व प्रमाण होता है और नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीन अघाति कर्मों का स्थितिबंध वर्षसहस्रपृथक्त्व ' होता है तथा किट्टिकरणाद्धा के अंत में अर्थात् चरम समय में संज्वलनलोभ का स्थितिबंध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है । लेकिन यह अन्तर्मुहूर्त पूर्व की अपेक्षा अल्पतर जानना चाहिये तथा घातिकर्मों का स्थितिबंध अन्तर्दिवस अर्थात् दिन-रात्रि के भीतर होता है। नाम, गोत्र और वेदनीय इन अघाति कर्मों का स्थितिबंध वर्षसहस्रपृथक्त्व प्रमाण से हीन हीनतर होता हुआ उस किट्टिकरणाद्धा के चरम समय में दो वर्षों के भीतर होता है । ऐसे समय में - - कट्टिकरणाद्धा में जब एक समय कम तीन आवलिका काल शेष रह जाने पर अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण लोभ के दलिक संज्वलन लोभ में नहीं संक्रमाता है, किन्तु स्वस्थान में ही स्थित रहते हुए उपशम को प्राप्त होते हैं । पुनः किट्टिकरणाद्धा में दो आवलिका काल शेष रहने पर बादर संज्वलन लोभ का आगाल नहीं होता है, किन्तु उदीरणा ही होती है और वह भी आवलिका काल तक होती है। इस उदीरणावलिका के चरम समय में जो किट्टिकृत द्वितीय स्थितिगत दलिक हैं और जो पूर्वोक्त अर्थात् समयोन आवलिकाद्विक बद्ध दलिक हैं और जो एक आवलिका किट्टिकरणाद्धा की शेष है, यह सब संज्वलन लोभ अभी अनुपशांत है और शेष सब उपशांत हो गया है और उसी चरम समय में अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण लोभ उपशांत हो जाते हैं। उसी समय संज्वलन लोभ का बंध व्यवच्छेद, बादर संज्वलन लोभ के उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है । यही अनिवृत्तिबादर संपराय गुणस्थान का चरम समय है तथा सेसद्धं तणुरागो, तावईया किट्टिओ य पढमठिई । वज्जिय असंखभागं, हेड्डुवरिमुदीरई सेसा ॥ ५४॥ शब्दार्थ सेसद्धं - शेष काल में, तणुरागो सूक्ष्म संपरायी, तावईया उतनी ही, किट्टिओ - किट्टियों में से, य- और, पढमठिई - प्रथम असंखभागं असंख्यात भाग, हेड्डुवरिं - नीचे और ऊपर का, उदीरई गाथार्थ शेष काल में (तीसरे भाग में) वह सूक्ष्म संपरायी होता है और किट्टियों में से उतनी ही प्रथम स्थिति एवं अंतिम किट्टि के नीचे का और प्रथम किट्टि के ऊपर का असंख्यातवां भाग स्थिति, वज्जिय छोड़ कर, उदीरणा करता है, सेसा - शेष । १. यहां पृथक्त्व शब्द बहुत्व का वाचक - द्योतक है। - - - - -
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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