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________________ २९४ ] एवित्थी संखतमे गयम्मि घाईण संखवासाणि । संखगुणहाणि एत्तो, देसावरणाणुदगराई ॥ ४५ ॥ गयम्मि - शब्दार्थ - एव - इस प्रकार, इत्थी - स्त्रीवेद, संखतमे - संख्यातवें भाग, बीतने पर, घाई - घातिकर्मों का, संखवासाणि – संख्यात वर्षों का, संखगुणहाणि – संख्यात गुणहीन, एत्तो – इसके आगे, देसावरणाण – देशघाति प्रकृतियों का, उदगराई – उदक (रेखा) के समान ( एकस्थानक ) । - [ कर्मप्रकृति गाथार्थ इस प्रकार से उपशमित किये जा रहे स्त्रीवेद के काल के संख्यातवें भाग के बीतने पर घातिकर्मों का स्थितिबंध संख्यात वर्ष प्रमाण होता है और उसके आगे संख्यात गुणहीन होता है, उसके पश्चात् देशघाति कर्मों का उदकराजि (जलरेखा) के समान ( एकस्थानक) रसबंध होता है। विशेषार्थ इस पूर्वोक्त प्रकार से उपशम्यमान स्त्रीवेद के उपशमन काल से संख्यात भाग व्यतीत होने पर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन घातिकर्मों का स्थितिबंध संख्यात वर्ष प्रमाण होता है । इस संख्यात वर्ष प्रमाण स्थितिबंध से घाति कर्मों का अन्य अन्य स्थितिबंध पूर्व स्थितिबंध से संख्यात गुणहीन होता है और इसी संख्यात वर्ष प्रमाण स्थितिबंध से लेकर केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण को छोड़ कर शेष घाति ज्ञानावरण और दर्शनावरण प्रकृतियों के उदकराजि अर्थात् जलरेखा के समान एकस्थानक रस को बांधता है । तत्पश्चात् इसी प्रकार सहस्रों स्थितिबंधो के व्यतीत होने पर स्त्रीवेद उपशांत हो जाता है तथा - तो सत्तण्हं एवं संखतमे संखवासितो दोन्हं । बियो पुण ठिइबंधो, सव्वेसिं संखवासाणि ॥ ४६ ॥ पुन:, - शब्दार्थ – तो – तत्पश्चात्, सत्तण्हं - सातों एवं - इसी प्रकार, संखतमे - संख्यातवें संखवासितो - संख्यात वर्ष का, दोण्हं – दो कर्मों का, बिइयो – दूसरा, पुण ठिइबंधो – स्थितिबंध, सव्वेसिं - सभी कर्मों का, संखवासाणि - संख्यात वर्ष का । भाग, गाथार्थ • तत्पश्चात् (स्त्रीवेद को उपशमाने के पश्चात् ) सातों नोकषायों को भी इसी प्रकार उपशमाता है । उनको उपशमाने के संख्यातवें भाग प्रमाण समय बीत जाने पर दो कर्मों का (नाम और गोत्र कर्मों का) स्थितिबंध संख्यात वर्ष का होता है तथा उसके पश्चात् सभी कर्मों का स्थितिबंध संख्यात वर्ष का होता है । विशेषार्थ - स्रीवेद के उपशांत होने पर शेष सातों नोकषायों को उपशमित करना आरंभ करता है और उनको भी पूर्वोक्त प्रकार से उपशमाते हुए उपशमना काल के संख्यातवें भाग के बीतने
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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