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________________ उपशमनाकरण ] [ २८९ स्थिति वाले ज्ञानावरण दर्शनावरण और अंतराय कर्म के स्थितिबंध की अपेक्षा बीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति वाले नाम और गोत्र कर्म ऊपर हो जाते हैं। इस स्थान का अल्पबहुत्व इस प्रकार है कि - ___ मोहनीय कर्म का स्थितिबंध सबसे अल्प, उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय कर्म का स्थितिबंध असंख्यात गुणा है, किन्तु स्वस्थान में परस्पर समान होता है। उससे भी नाम और गोत्र कर्म का स्थितिबंध असंख्यात गुणा है किन्तु स्वस्थान में परस्पर समान है। उससे भी वेदनीय का स्थितिबंध विशेषाधिक होता है । तथा 'असंखगुणणाए त्ति' अर्थात् जहां पर मोहनीय कर्म ज्ञानावरणादि कर्मों से असंख्यात गुणा हीन हुआ वहां से ले कर सर्वत्र ही असंख्यात गुणितहीन क्रम से ही चला आता है और तीसरा वेदनीय कर्म बीस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण स्थिति वाले नाम और गोत्र से विशेषाधिक होता है। वहां से आगे सर्वत्र ही विशेषाधिक क्रम से अनुवर्तित होता है। तथा – अहुदीरणा असंखेज - समयबद्धाण देसघाइ त्थ। दाणंतरायमणपज्जवं च तो ओहिदुगलाभो॥४०॥ सुयभोगाचक्खूओ, चक्खू य ततो मई सपरिभोगा। विरियं च असेढिगया, बंधंति उ सव्वघाईणि॥४१॥ शब्दार्थ – अह - अब इस समय, उदीरणा - उदीरणा, असंखेज - असंख्यात, समयबद्धाण - समयबद्ध (कर्मों) की, देसघाइत्थ – देशघाति, दाणंतरायमणपज्जवं - दानान्तराय, मनःपर्यव ज्ञानावरण को, च – और, तो – उसके बाद, ओहिदुगलाभो – अवधिद्विक लाभान्तराय को। सुयभोगाचक्खूओ - श्रुतज्ञानावरण, भोगान्तराय, अचक्षुदर्शनावरण, चक्खू - चक्षुदर्शनावरण, य - और, ततो – तत्पश्चात, मई – मतिज्ञानावरण, सपरिभोगा - परिभोगान्तराय (उपभोगान्तराय) सहित, विरियं – वीर्यान्तराय को, च - और, असेढिगया - अश्रेणीगत, बंधंतिबांधते हैं, उ – ही, सव्वघाईणि - सर्वघाति। गाथार्थ – इस समय असंख्यात समयबद्ध कर्मों की उदीरणा होती है । पुनः दानान्तराय और मनःपर्ययज्ञानावरण को देशघाति रस से(अनुभाग) बांधता है, तत्पश्चात् अवधिद्विक और लाभान्तराय को देशघाति रस से बांधता है। उसके बाद श्रुतज्ञानावरण, भोगान्तराय और अचक्षुदर्शनावरण को देशघाति रस से बांधता है । पुनः चक्षुदर्शनावरण को पुनः परिभोगान्तराय सहित मतिज्ञानावरण को और पुनः वीर्यान्तराय को देशघाति अनुभाग से बांधता है। किंतु अश्रेणीगत सभी जीव उक्त कर्मों को
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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