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उपशमनाकरण ]
[ २५७ उपशमना योग्य कर्म और उसका अधिकारी अब यह बतलाते हैं कि उपशमना किस कर्म की होती है और उसका करने वाला कौन होता है
सव्वुवसमणा मोह-स्सेव तस्सुवसमक्किया जोग्गा। पंचेंदिओ उ सन्नी, पज्जत्तो लद्धितिगजुत्तो॥३॥ पुव्वं पि विसुझंतो गंठियसत्ताणइक्कमिय सोहिं। अन्नयरे सागारे, जोगे य विसुद्धलेसासु॥४॥ ठिइ सत्तकम्म अंतो-कोडाकोडी करेत्तु सत्तण्हं। दुट्ठाणं चउट्ठाणे असुभ सुभाणं च अणुभागं॥५॥ बंधंतो धुवपगडी, भवपाउग्गा सुभा अणाऊ य। जोगवसा य पएसं, उक्कोसं मज्झिम जहण्हं॥६॥ ठिइबंधद्धापूरे, नवबंधं पल्लसंख भागूणं। असुभसुभाणणुभागं, अणंतगुणहाणिवुडीहिं॥ ७॥ करणं अहापवत्तं, अपुव्वकरणमनियट्टिकरणं च।
अंतोमुहुत्तियाई, उवसंतद्धं च लहइ कमा॥८॥ शब्दार्थ – सव्वुवसमणा – सर्वोपशमना, मोहस्सेव - मोहनीय कर्म की ही, तस्सुवसमक्किया – उसकी उपशमना के, जोग्गा - योग्य, पंचेंदिओ – पंचेन्द्रिय, उ – और, सन्नी- संज्ञी, पज्जत्तो – पर्याप्त, लद्धितिगजुत्तो – लब्धित्रय युक्त।
पुव्वं पि – करण से भी पूर्व, विसुझंतो – अनन्तगुणविशुद्धि वाला, गंठियसत्ताणइक्कमिय सोहिं – ग्रंथिवर्ती अभव्य जीव की विशुद्धि का अतिक्रमण कर, अन्नयरे – अन्यतर (किसी एक) सागारे - साकारोपयोग में, जोगे – योग, य – और, विसुद्धलेसासु – विशुद्ध लेश्या में।
ठिइ – स्थिति, सत्तकम्म – कर्म सत्ता की, अंतोकोडाकोडी - अंत: कोडाकोडी, करेत्तु – करके, सत्तण्हं – सात कर्मों की, दुट्ठाणं – द्विस्थानक, चउट्ठाणे - चतु:स्थानक, असुभ – अशुभ, सुभाणं – शुभ की, च – और, अणुभागं – अनुभाग।
बंधंतो – बांधता हुआ, धुवपगडी - ध्रुव प्रकृतियों को, भवपाउग्गा - भवप्रायोग्य, सुभा - शुभ प्रकृतियों को, अणाऊ - आयु के अतिरिक्त, य - और, जोगवसा – योगानुसार, य- और, पएसं – प्रदेश बंध को, उक्कोसं – उत्कृष्ट, मज्झिम – मध्यम, जहण्हं - जघन्य।
ठिइबंधद्धापूरे – स्थितिबंध काल पूर्ण होने पर, नवबंधं – नवीन बंध को, पल्लसंख