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________________ उदीरणाकरण ] [ २३३ ___ मणुओरालियवज-रिसहाण मणुओ तिपल्लपजत्तो। . नियगठिई उक्कोसो पज्जत्तो आउगाणं पि॥६४॥ शब्दार्थ - मणुओरालियवजरिसहाण - मनुष्य गति, औदारिक, वज्रऋषभनाराच संहनन, मणुओ - मनुष्य, तिपल्लपज्जत्तो - तीन पल्योपम की आयु वाला पर्याप्त, नियगठिई - अपनी अपनी स्थिति, उक्कोसो – उत्कृष्ट, पजत्तो – पर्याप्त, आउगाणं - आयुओं का, पि – भी। ___ गाथार्थ – तीन पल्योपम की आयु वाला पर्याप्त मनुष्य मनुष्यगति, औदारिकशरीर, वज्रऋषभनाराच संहनन की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी है तथा अपनी अपनी आयु की उत्कृष्ट स्थिति में वर्तमान पर्याप्त जीव अपनी-अपनी आयु की उत्कृष्ट उदीरणा करता है। - विशेषार्थ – तीन पल्योपम की आयु स्थिति वाला सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त और सर्व विशुद्ध परिणाम वाला मनुष्यगति, औदारिकसप्तक, वज्रऋषभनाराच संहनन इन नौ प्रकृतियों की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी है। अपनी अपनी सर्वोत्कृष्ट स्थिति में वर्तमान और सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त सर्व विशुद्ध देव, मनुष्य और तिर्यंच अपनी अपनी आयु की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करते हैं और अपनी उत्कृष्ट आयु में वर्तमान सर्वसंक्लिष्ट पर्याप्त नारकी जीव नरकायु के उत्कृष्ट अनुभाग का उदीरक होता है। तथा - हस्सट्ठिई पज्जत्ता तन्नामा विगलजाइसुहुमाणं। थावर निगोयएगिं-दियाणमवि बायरो नवरि ॥६५॥ शब्दार्थ – हस्सट्ठिई - अल्प स्थिति वाले, पजत्ता - पर्याप्त, तत्रामा - उस उस नाम वाली, विगलजाइ - विकलेन्द्रिय जातियों, सुहुमाणं - सूक्ष्म नाम की, थावर – स्थावर, निगोयनिगोद (साधारण), एगिंदियाणमवि - एकेन्द्रिय की भी, बायरो - बादर, नवरिं - विशेष। गाथार्थ – अल्प स्थिति वाले और उस उस प्रकृति के उदय वाले पर्याप्तक जीव उस उस नाम वाली विकलेन्द्रिय जाति और सूक्ष्म नाम के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा करते हैं । विशेष यह है कि स्थावर, निगोद, (साधारण) और एकेन्द्रिय जाति की बादर एकेन्द्रिय जीव उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करते हैं। विशेषार्थ – अल्प स्थिति वाले पर्याप्तक जीव उस उस नाम वाले अर्थात् द्वीन्द्रिय आदि जाति वाले और सूक्ष्म नाम कर्म के उदय वाले अपनी अपनी नाम वाली विकलेन्द्रिय जातियों की और सूक्ष्म नामकर्म की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा के स्वामी हैं। इसका तात्पर्य यह है कि - ... द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव और सूक्ष्म नामकर्मोदय वाले सूक्ष्म जीव जो सर्व जघन्यस्थिति
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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