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________________ उदीरणाकरण ] इसीलिये यहां गाथा में मध्यपरिणाम पद का ग्रहण किया गया है। 'अपुमादि' अर्थात् नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा तथा असातावेदनीय इन छह प्रकृतियों की उत्कृष्ट उदीरणा का स्वामी भी ज्येष्ठ स्थितिक उत्कृष्ट स्थिति वाला और सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त तथा सर्वाधिक संक्लिष्ट परिणामी नारक जानना चाहिये । तथा - शब्दार्थ - पंचिंदिय - पंचेन्द्रिय, तस — त्रस, बायर साइसुस्सरगईणं – सातावेदनीय, सुस्वर, देवगति की, वेउव्वुस्सासाणं - की, देवो - देव, जेट्ठठ्ठिइसमत्ता - उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त । पंचिंदिय तस बायर पज्जत्तग साइसुस्सरगईणं । वेउव्वस्सासाणं देवो जेट्ठट्टिइसमत्ता ॥ ६० ॥ — — गाथार्थ उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त देव पंचेन्द्रिय, त्रस, बादर, पर्याप्त, सातावेदनीय, सुस्वर, देवगति, वैक्रियसप्तक और उच्छ्वास की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी है । - विशेषार्थ • ज्येष्ठस्थितिक अर्थात् तेतीस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाला देव जो समाप्त अर्थात् सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त है और सर्व विशुद्ध परिणाम बाला है वह पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सातावेदनीय, सुस्वर, देवगति, वैक्रियसप्तक और उच्छ्वास इन पन्द्रह प्रकृतियों की उत्कृष्ट - अनुभाग उदीरणा का स्वामी भी है तथा सम्मत्तमीसगाणं सेकाले गहिहिइत्ति मिच्छत्तं । हासरईणं सहस्सा - रगस्स पज्जत्तदेवस्स ॥ ६१ ॥ सम्मत्तमीसगाणं सम्यक्त्व, मिश्र की, सेकाले मिथ्यात्व को, हासरईणं पर्याप्त देव के । - - [ २३१ शब्दार्थ गहिहित्ि ग्रहण करने वाला है, मिच्छत्तं सहस्सारगस्स सहस्रारकल्पगत, पज्जत्तदेवस्स गाथार्थ जो अनन्तर समय में मिथ्यात्व को ग्रहण करने वाला है, उसके सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय की तथा सहस्रारकल्पगत पर्याप्त देव के हास्य और रति की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है। पर्याप्त, बादर, पज्जत्तग वैक्रियसप्तक उच्छ्वास - - विशेषार्थ जो अनन्तर समय में मिथ्यात्व को ग्रहण करेगा ऐसे सर्वाधिक संक्लिष्ट परिणाम वाले जीव के सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का यथासंभव उदय होने पर उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा होती है तथा सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त सहस्रार स्वर्गवासी देव के हास्य और रति प्रकृति की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है । तथा अनन्तर समय में, हास्य रति की,
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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